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* प्राकृत व्याकरण *
('न) युक्तम् (इति', संस्कृत शमहं । इनका प्राकृत रूप 'न जुत्तं ति' है । इनमें से 'न' की सिद्धि १-६ में की गई है । और "ति' को सिद्धि भी इसी सूत्र में की गई है । जत की सानिका इस प्रकार है। इसमें सूत्रसंख्या १-२४५ से 'य' का 'ज',२-७७ से 'क' का लोप २-८९ से शेष 'ल' का द्वित्व 'त'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति, १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर जुत्तं रूप सिद्ध हो जाता है।
तथा इति संस्कृत अव्यय है। इनके प्राकृत रूप तह त्ति होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'थ' का 'ह'; १४२ से प्रति के 'कालोप; और 'त्ति' के 'त'का द्विस्व 'त'; १-८४ से 'हा के 'आ' का 'अ' होकर सह ति रूप सिद्ध हो जाता है।
झग इति संस्कृत अव्यय है। इसके प्राकृत रूप अत्ति होते हैं। इनमें धूम संख्या १-११ से 'ग' का लोय; १-४२ से पति के 'इ' का लोप; तथा 'ति' के 'त' का द्वित्व 'त' होकर झाति रूप बन जाता है।
प्रियः (इंति) संस्कृत शब्द हैं । इनके प्राकृत कर पिओ ति' होते हैं । इनमें सूत्र संख्या २-५९ से 'र' का लोप; १-१७७ से 'य' का लोष; ३-२ मे प्रथमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर पिओ रूप सिद्ध हो जाता है। 'ति'शी सिद्धि इसी सत्र में की गई है।
मुरुषः इति संस्कृत शम्ब है । इनके प्राकृत रूप पुरिसो ति होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.-१११ से '' है '' को 'इ', १-२६० से 'a' का 'स'; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में 'सि' के स्थान पर 'ओ' होकर पुरिसो रूप सिद्ध हो जाता है। 'त्ति' की सिद्धि इसी सूत्र में की गई है।
इति संस्कृत अध्यय है । इसका प्राकृत रूप है। इसमें सूत्र संघा-१-९१ से 'ति' में रही हुई 'इ' का 'अ' १-१७७ से 'त्' का लोप होकर 'इ' कप सिद्ध हो जाता है।
विध्य संस्कृत शम्न है। इसका प्राकृत रूप विश्न होता है । इसमें सूत्र संख्या २-२६ से 'य' का 'म'; १-३० से अनुस्वार का 'अ' होकर विकस रूप सिब हो जाता है।
महा शब्द का रुप संस्कृत और प्राकृत में 'गुहा होता है । निलयायाः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप निलयाए होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-२९ से इस याने षष्ठी एक वचन के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर निलयाए रूप सिद्ध हो जाता है ।। ४२ ॥
लुप्त-य-र-व-श-ष-सां श-ष-सां दीर्घः ॥ १-४३॥ प्राकृतलक्षणशालुप्ता याद्या उपरि अधो वा येषां शकारपकारसकाराणां तेषामादेः स्वरस्य दीर्घो भवति ।" शस्थ य लोपे। पश्यति । पासइ । कश्यपः । कासयो । आवश्यकं । आवासयं ।। रलोपे । विश्राम्यति । वीसमइ । विश्रामः । वीसामी ॥ मिश्रम् । भीर्य ॥ संस्पर्शः। संकासो ।। वलोपे । अश्वः । श्रासो। विश्वसिति । वीससइ ॥ विश्वासः । वीसासौ ॥ शलोपे ।
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