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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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पिशाचः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पिसल्लो और पिसा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप सूत्र संख्या १-८४ से 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-२६० से 'शू' का 'सू'; ९-१६३ से 'च' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से आदेश की प्राप्ति २ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'पिसल्लो' सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप पिसाओ में सूत्र- संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-१७७ से 'च्' का लोप और ३-२ से प्रथम रूप के समान ही 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप पिता भी सिद्ध हो जाता है ।
जटिले जो को वा ।। १-१६४ ॥
जटिले जस्य को वा भावति ॥ भडिलो जडिलो ||
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अर्थः जटिल शब्द में स्थित 'ज' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'फ' की प्राप्ति हुआ करती है । जैसे:-- जटिल:- मडिलो अथवा जडिलो ||
जटिलः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रुप झडिलो और जडिलो होते हैं। इनमें सुखसंख्या १९६४ से 'ज' के स्थान पर विकल्प रूप से 'फ' की प्राप्ति; १-१६५ से 'ट' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर झडलो और जडिलो रूप सिद्ध हो जाते हैं ।। १-१६४ ॥
॥ टो ङः १-१६५ ॥
स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेष्टस्य डो भवति ।। नडो ! भडो । घडी | घडड़ || स्वरादित्येव । घंटा || असंयुक्तस्येत्येव । खट्टा || अनादरित्येव । टक्को ॥ क्वचिन्न भवति । श्रद्धति || अ ||
अर्थ:- यदि किसी शब्द में 'ट' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ, असंयुक्त और अनादि रूप हो; हलन्त भी न हो तथा आदि में भी स्थित न हो; तो उस 'ट' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति होती है ! जैसे:- नट-- नडी ॥ भट:- भडो । घटः = घडी || घटति= घड |
प्रश्न:- "स्वर से परे रहता हुआ हो" ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- क्योंकि यदि किसी शब्द में 'द' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं होगा तो उस '' का 'ड' नहीं होगा । जैसे घण्टा घंटा ॥
प्रश्न:- संयुक्त अर्थात् हलन्त नहीं होना चाहिये; याने असंयुक्त अर्थात् स्वर से युक्त होना चाहिये "ऐसा क्यों कहा गया है !