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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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और 'ह' दोनों ही होते हैं । जैसे:-सफलम् सभलं अथवा महलं ।। शेफालिका-सेभालिया अथवा सहालिआ || शफरी =सभरी अथवा सहरी । गुफत्ति = गुमइ अथवा मुहइ ।।
प्रश्नः-- 'स्वर से परे रहता हुअा हो' ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:-क्यों कि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण स्वर मे परे रहता हुआ नहीं होगा तो उस 'फ' वर्ण का 'म' अथवा 'ह' नहीं होगा । जैसे:---गुम्फति =गुफइ । इस उदाहरण में 'क' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं है, किन्तु सकस भजन म परे रहा हुआ है; अतः यहाँ पर 'क' का 'भ' अथवा 'ह' नहीं हुआ है। ऐसा ही अन्य उदाहरणों में भी समझ लेना ॥
प्रश्न:--'संयुक्त याने हलन्त नहीं होना चाहिये; किन्तु असंयुक्त याने स्वर से युक्त होना चाहिये ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:- क्यों कि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण संयुक्त होगा-स्वर रहित होगा-हलन्त होगा; तो उस 'क' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होगा । जैसे:-पुष्पम = पुष्पं ।। (ग्रंथकार का यह दृष्टान्त यहाँ पर उपयुक्त नहीं है; क्यों कि अधिकृत विषय हलन्त 'फ' का है; न कि किसी अन्य वर्ण का; अतः हलन्स 'फ' का उदाहरण अन्यत्र देख लेना चाहिये ।)
प्रश्नः-अनादि रूप से स्थित हो; शब्द में प्रथम अक्षर रूप से स्थित नहीं हो; अर्थात् शहद में श्रादि स्थान पर स्थित नही हो'; ऐसा क्यों कहा गया है ? ।
उत्तरः-क्यों कि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण श्रादि अक्षर रूप होगा; तो उस 'फ' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होगा। जैसे:-तिष्ठति फणी-चिट्ठइ फणी ॥ इस उदाहरण में 'फ' वर्ण 'फणी' पद में श्रादि अक्षर रूप से स्थित है; अत: यहाँ पर 'फ' का 'भ' अथवा 'ह' नहीं हुआ है। इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों में भी जान लेना चाहिये ।।
प्रश्न: -वृत्ति में 'प्रायः' अव्यय का ग्रहण क्यों किया गया है ?
उत्तर:-'प्रायः अव्यय का उल्लेख यह प्रदर्शित करता है कि किन्हीं किन्हीं शब्दों में 'फ' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप होता हुआ हो; तो भी उस 'फ' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होता है। जैसे:-कृष्ण-फणी कसण-कणो ।। इस उदाहरण में 'फ' वर्ण स्वर से परे होता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप है; फिर भी 'फ' वर्ण का न तो 'भ' ही हुआ है और न ह' ही। ऐसा हो अन्य शब्दों के संबंध में भी जान लेना चाहिये ।
रेफ: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप रेभी होता है । इसमें सुत्र संख्या १-२३६ से 'फ' का 'म' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर रेभो रूप सिद्ध हो जाता है।