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* प्राकृत व्याकरण *
आ जाय, तो भी उन 'शकार' और 'पकार' के स्थान पर 'सकार' की प्राप्ति हो जाती है। जैसे:शेषः-सेसो और विशेषः-विसेमी।। इत्यादि ।।
शब्द: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सदो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स', २-७ से 'ब' का लोप, २-८६ से '' को दिन 'इ' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सदो रूप सिद्ध हो जाता है।
कुझ संस्कृत रूप है। इस जुस होता है : इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कुसो रूप सिद्ध हो जाता है। निसंसो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२८ में की गई है।
वंशः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वप्तो होता है। इममें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वसेा रूप सिद्ध हो जाता है।
इयामा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सामा होता है। इसमें सूत्र-संज्या १-२६० से 'श' का 'स', और २-७८ से 'य' का लोप होकर सामा रूप सिद्ध हो जाता है।
सम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रुप सुद्ध होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स', ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्रान 'म्' का अनुस्वार होकर सुख रूप सिद्ध हो जाता है।
दस रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२१६ में की गई है। सोहइ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-९८७ में की गई हैं।
विशात संस्कृत सकर्मक क्रिया पर का रूप है। इसका प्राकृत रूप विसइ होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-२६० से 'श' का 'स' और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वितह रूप सिद्ध हो जाता है।
पण्डः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सण्डो होता है। इसमें सूत्र-संख्यो १-२६० से 'प' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' अत्यय की प्राप्ति होकर पण्डो रूप सिद्ध हो जाता है।
निहसो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१८६ में की गई है।
कवायः संस्कृत रूप है इसका प्राकृत रूप कसायी होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'ध' का 'स'; १-१७७ से 'य' का लोप और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कसाओ रूप सिद्ध हो जाता है।