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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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शुष्क-स्कन्दे वा ॥ २.५ ॥ अनयोः क स्क-योः खो वा भवति ।। सुख सुक्क | सन्दो कन्दी ।।
अर्थ:--'शुरुक' और 'स्कन्द में रहे ह्याए 'क' के स्थान पर एवं 'क' के स्थान पर विकल्प से 'ख' होना है । जैसे:-शुष्कम् सुकलं अथवा सुरकं और स्कन्धः-ब-दो अथवा कन्यो ।।
शुष्कम संस्कृत विशेषण रूप है । इम के प्राकृत रूप मुस्खे और सु होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सून मंख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २-५ से 8क के स्थान पर विकल्प में 'ख'; २-८८ से प्राप्त 'ख का द्वित्व 'ख्ख ; २.६० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क': ३-२५ से प्रथमा विभका के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म का अनुस्वार होकर प्रथम रूप मुक्खं सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स ; २-१७ से 'प्' का लोप; २-८६ से शेष 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति और शेप सानिका प्रथम रूप के समान ही हो कर द्वितीय रूप मुक्कं भी सिद्ध हो जाता है।
स्कन्द्रः संस्कृत रूप है इसके प्राकृत रूप खन्दी और कन्दा होने हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसंख्या -५ से 'क' के स्थान पर विकल्प से 'ख की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्रथम रूप खन्दी सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप कन्मो में सूत्र संख्या २-39 से 'स' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुस्तिका में मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप फन्दो भी सिद्ध हो जाता है। -1
वेटकादौ ॥ २६ ॥ चपेट कादिषु संयुक्तस्य खो भवति || खेडो ॥ोटक शब्दो विष-पर्यायः । घोटकः । खोडओ ॥ स्फोटकः । खोड प्रो । स्फेटकः । खेडो ॥ स्फेटिकः । खेडियो ।
___ अर्थ:-विष-अर्थ वाचक संवेटक शहर में एवं वोटक, स्फोटक, स्फेटक और स्फेटिक शब्दों में श्रादि स्थान पर रहे हुए संयुक्त अक्षरों का अर्थान् ‘व्', तथा 'र' का 'ख' होना है। जैसेः चेटकःखेडो; वोटकः-खोडो; स्फोटका खोडओ; स्फेटका खेड़ओ और फटका खेडियो ।।
वेटकः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सेड ओ होना है। इसमें सूत्र-संख्या २-६ से 'च' के स्थान पर 'ख' का प्राप्त; ५-१६५ से 'ट' का 'ड'; १-१७७ से 'क' का लोप और ३.२ से प्रयमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में लि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खेड नो रूप सिद्ध हो जाता है।