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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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किदिनीय 'लकार' का; इस प्रकार 'तारपर्थ-विशेष' को समझाने के लिये ही 'च अक्षर को मूल सूत्र में स्थान प्रदान किया है । उदाहरण इस प्रकार है:- ललाटम्-णिडाल और णडालं ।। पिडालं और णडालें रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४७ में की गई है ।।१-२५७।।
.. शबरे वो मः ।। १-२५८ ।। शबरे बस्य मो भवति ॥ समरो॥ अर्थः शबर शब्द में रहें हुए. 'ब' का 'म होता है । जैसे-शबर: समरो ।।
शायरः संस्कृत रूप है । इसका प्रागृत रूप समगे होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२५८ से 'ब' का 'म' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिग में 'मि 'प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रस्यय की प्राप्ति होकर समरो रूप की सिद्धि हो जाती है ।। १-५८ ॥
स्वप्न-नीव्यो वा ॥ १-२५६ ॥ अन्योर्वस्य मो वा भवति ।। सिमिणो सिविणो ॥ नीमी नीवी ॥
अर्थ:-स्वप्न और नीवी शब्दों में रहे हुए 'ध' का विकल्प से 'म' होता है । जैसे:-स्वप्ना: सिमिणो अथवा सिविणो । नीबी-नीमी अथवा नीयी ।।
सिमिणो और सिषिणो रूपरे की सिद्धि सूत्र-संख्या १४ में की गई है।
नीवी संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप नीमी और नीची होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२५६ से 'च' का विकल्प से 'म' होकर कम से नीमी और नीवी दोनों रूपों को सिद्धि हो जाती है । ५-२५६ ।।
श-षोः सः ॥ १-२६० ॥ शकार पकारयोः सो भवति ॥ श । सहो । कुसो । निसंसो। वंसो। सामा । सुद्ध । दस । सोहर । विसइ ॥ष ।। सण्डो । निहसो । कसायो । पोसइ ॥ उभयोरपि । सेसो। बिसेसो ।।
___ अर्थ:-संस्कृत शब्दों में रहे हुए. 'शकार' का और 'षकार का प्राकृत रूपान्तर में 'सकार' हो जाता है। 'श' से संबंधित कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:-शब्दः-सहो । कुश:-कुसो ॥ नृशंसः = निसंतो ॥ चंश-वसो ॥ श्यामा-सामा ।। शुखम्सुद्धं । दशब्दस ।। शोभते-मोहह ॥ विशत्ति-विसह ॥ इत्यादि । 'ष' से संबंधित कुछ उदाहरण इस प्रकार है:-पण्डासण्डो । निकषः - निहसो । कषायः कसायो । पोषयति घोसइ ।। इत्यादि । यदि एक ही शब्द में आगे पीछे अथवा साथ साथ में 'शकार' एवं 'पकार'