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* प्राकृत व्याकरण
छाया संस्कृत रूप है। इमके प्राकृत रूप बाही और छाया होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ५-२४६ से 'य' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति और ३-३४ से 'या' में अर्थान् आदेश रूप से प्राप्त 'हा' में स्थित 'श्रा' को स्त्रीलिंग-स्थिति में विकल्प से 'ई' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप छाहा सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप छाया संस्कृत के समान हो होने से सिद्धवत् हो है।
सच्छायम संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रुप सन्छाई और सच्छार्य होता है। प्रश्रम रूप में सूत्र-संख्या १-२४६ से 'य' के स्थान पर है! की प्रानि; ३-२५ से प्रथमा 'विमति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ' म प्रत्यय की प्राप्ति और. १.१३ से प्राप्त 'म्' का अनुखार होकर प्रथम रूप सच्छाह सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र-संग्ख्या १-२३ से 'म्' का अनुस्वार हो कर सच्छार्य रूप सिद्ध हो जाता है।
मुख छाया संस्कृत रुप है । इसका प्राकृतारूप मुह-च्छाया होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८५ से 'ख' का 'ह'; -६ से 'छ' को द्वित्व 'छछ की प्राप्ति और २-६० से प्राप्त पूर्व छ' को च' को प्राप्ति होकर मुहच्छाया रूप सिद्ध हो जाता है। ।। १.२४६ ।।
डाह-वौ कतिपये ॥ १-२५० ॥ कतिपये यस्य डाह व इत्येती पर्यायेण भवतः ।।कइवाह । कइअयं ।।
अर्थ:- कतिपय शब्द में स्थित 'य' वर्ण को कम से एवं पर्याय रूप से 'आह' की और 'य' की प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार है:-कहवाहं और कइअवं ॥ कतिपयम् संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत में कइवाहं और कइश्रवं दो रूप होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; ५-२३१ से 'प' का 'व'; १-२५० से 'य' को 'प्राह की प्राप्ति; १-५ से 'व' में स्थित 'अ' के साथ प्राप्त 'आह' में स्थित 'आ' की संधि होकर 'वाह' की प्राप्तिः ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारांत नपुंसकलिंग में 'सि प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रुप कड़वाह सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप कइन में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त' और 'प' का लोप; १-२५० से 'य' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति और शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही होकर कईअयं रूप की सिद्ध हो जाती है ||२५||
किरि-भेरे रो डः ॥ १-२५१ ।। अनयो रस्य हो भवति । किडी । भेडो । अर्थ:-किरि और भेर शब्द में रहे हुए 'र' का 'तु' होता है । जैसे:-किरिः किडी भेर: भेडी।।