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* प्राकृत व्याकरण
पिसिनी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मिसिणा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३८ से 'ब' का 'भ' और १-२२८ से 'न' का 'ण' होकर मिसिणी रूप सिद्ध हो जाता है।
विस-तन्तु-पेलवानाम् संस्कृत षष्ठयन्त वाक्यांश है । इसका प्राकृत रूपांतर बिम-तन्तु-पेलबार्ण होता है। इसमें केवल विभक्ति प्रत्यय का ही अन्तर है। तदनुसार सूत्र-संख्या ३-६ से संस्कृत षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय 'श्राम' के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति; ३-१२ से प्राप्त 'ण' प्रत्यय के पूर्व में स्थित 'व' में रहे हुए 'अ' को 'श्रा' की प्राप्ति, और १-२७ से 'ए' प्रत्यय पर अनुस्वार को प्राप्ति होकर विस-तन्तु पेलपाण रूप की सिद्धि हो जाती है ॥ १-२३६ ।।
कबन्धे म-यो । १-२३६ ॥ कबन्धे बस्य मयौ भवतः ॥ कमन्धो । कयन्धो ।।
अर्थः-कबन्ध शब्द में स्थित 'ब' का कमी 'म' होना है और कभी 'य' होता है। तदनुसार कबन्ध के दो रूप होते हैं । जो कि इस प्रकार हैं:--कमन्धों और कयन्धो ।
कबन्धः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप कमन्धो और कयन्धो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ५-२३९ से प्रथम रूप में 'ब' की 'म' और द्वितीय रूप में इसी सूत्रानुसार '' का 'य' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से कमन्धी और कयन्धो की सिद्धि हो जाती है। ।। १-२३६ ॥
कैटभे भो वः ॥ १-२४० ॥ कैटभे मस्य वो भवति ॥ केढवो ।। अर्थ:-कैटभ शब्द में स्थित 'भ' का 'व' होता है। जैसे:-कैटभः केढयो।। फेडयो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१४८ में की गई है। ॥ १-२४० ॥
विषमे मो ढो वा ॥ १-२४१ ॥ विषमे मस्य दो वा भवति ॥ विसढो । विसमो !
अर्थ:-विषम शब्द में स्थित 'म' का वैकल्पिक रूप से 'ट' होता है । जैसे:-विषमः क्सिदो अथवा विसमो॥
विषमः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप विसढो और विसमो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या :-२६० से '' का 'स'; १.२४१ से 'म' का वैकल्पिक रूप से 'द' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक