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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से विसो और सिम की सिद्धि हो जाती है । ।। १-२४१ ।।
मन्मथे वः ।। १-२४२ ॥
मन्मथे मस्य वो भवति || वम्महो ।
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अर्थः- मन्मथ शब्द में स्थित आदि 'म' का 'व' होता है। जैसे-महो ॥
भन्मथः संस्कृत रूप हैं । इसका प्राकृत रूप वम्हो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२४२ से आदि 'म' का 'व'; २-६१ से 'न्म' का 'म'; २-८३ से प्राप्त 'म' का द्वित्व 'म्म'; १-१०० से 'थ' का 'ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मह रूप सिद्ध हो जाता है | ॥ १-२४२ ॥
वाभिमन्यौ । १-२४३ ॥
अभिमन्यु शब्दे मो वो वा भवति ॥ अवन्तु अहिमन्नू ॥
अर्थ – अभिमन्यु शब्द में स्थित 'म' का वैकल्पिक रूप से 'व' होता है । अभिमन्युः श्रबिन्नू अथवा अहिमन्नू ||
अभिमन्युः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप अविन्नू और हिमन्नू होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'भ का 'ह' २-२४३ से 'म' का विकल्प से 'व' २७ से 'य' का लोपः २६ से शेष 'न' का द्वित्व 'न' और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्य ह्रस्वर'' को दीर्घ स्वर 'क' की प्राप्ति होकर क्रम से अविन्नू और अहिमन्नू दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं । ।। १-२४३ ॥
भ्रमरे सो वा ॥ १-२४४ ॥
भ्रमरे मस्य सो वा भवति । भसलो भमरो ॥
अर्थ:-भ्रमर शब्द में स्थित 'म' का विकल्प से 'स' होता है। जैसे:- भ्रमरः मसलो अथवा भमरी ॥
भ्रमरः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप असलो और भमरो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २०७६ से प्रथम 'र्' का लोपः १-२४४ से विकल्प से 'म' का स; १-२५४ से द्वितोय 'र' का 'ल' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप भसको सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या २७६ से प्रथम 'शु'का लोप;