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प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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कृष्ण संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप कसण होता है। इस में सून संख्या १.१२६ से 'ऋ' का 'अ'; २-११० से हलन्द 'ए' में 'अ' की प्राप्ति; और १-२६० से प्राप्त प' का 'म' होकर फसण रूप सिद्ध हो जाता है।
वो वः ॥ १-२३७ ॥ स्वरान् परस्यासंयुक्तस्यानादेवस्य वो भवति ॥ अलावू । अलादू । अलाउ ।। शबलः । सवलो ।
अर्थ: यदि किसी शाटन में 'ब' वर्ण स्वर से परे रहता हुया असंयुक्त और अनादि रूप हो; अर्थान् वह 'ब' वर्ण हलन्त याने स्वर रहित भी न हो एवं आदि में मा स्थित न हो; तो उस 'ब' वर्ण का 'व' हो जाता है । जैसे:-अलाबू: अलाबू अथवा अलावू अथवा अलाऊ ।। शबलः सवलो!!
अलावू संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप अलायू, और अलावू और अलाऊ होते हैं । इनमें से प्रथम रूप अलावू में सूत्र संख्या ३.१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में ऊकारान्त में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य दीघ स्वर 'अ' एवं विसर्ग का दीर्घ स्वर 'ऊ' ही रह कर अलाबू सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-२३७ से 'ब' का 'ब' और ३-१६ से प्रथम रूप के समान ही प्रथमा विभक्ति का रूप सिद्ध होकर अलावू रूप भी सिद्ध हो जाता है। तृतीय रूप अलाऊ की सिद्धि सूत्र संख्या १-5 में की गई है।
शवल: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सवलो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२३७ से 'ब' का 'ब' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सबलो रूप सिद्ध हो जाता है। ॥ १-२३७ ।।
बिसिन्यां भः ॥ १-२३८ ॥ बिसिन्यां बस्य भो भवति ॥ भिसिणी ।। स्त्रीलिंगनिर्देशादिह न भवति । विस- . तन्तु-पेलवाणं ॥
__ अर्थ:-यिसिनी शब्द में रहे हुए 'ब' वर्ण का 'म' होता है । जैसे:-विमिनी-भिसिणी ॥ विमिनी शब्द जहां स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होगा; यहीं पर ही चिसिनो में स्थित 'व' का 'भ' होगा । किन्तु जहाँ पर 'विस' रूप निर्धारित होकर नपुंसक लिंग में प्रयुक्त होगा; वहाँ पर 'विस' में स्थित 'ब' का 'म' नहीं होगा । जैसेः-विस-सन्तु-पेलवानाम्-बिस-तन्तु-पेलवाणं ।। इस उदाहरण में 'विस' शब्द नमक लिंग में रहा हुअा है; अतः 'बिस में स्थित जका 'भ' नहीं हुआ है। यों लिंग-भेद से वर्ण-भेद जान लेना।