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* प्राकृत व्याकरण *
शिफा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सिमा होता है। इसमें सूय संख्या १-२६० से 'श' का 'स' और १-२३६ से 'फ' को 'भ' होकर सिभा रूप सिद्ध हो जाता है।
मुक्ताफलम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुत्ताहलं होता है। इसमें सूत्र संख्या २.४७ से 'क' का लोप; २.८६ से 'त' का द्वित्व 'त'; १-२३६ से 'फ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन । में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' पलाश के स्थान पर '' प्रत्यय की निट और १२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुत्ताहल रूप सिद्ध हो जाता है।
सफलम् संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप सभलं और सहलं होते हैं इसमें सूत्र संख्या १-२३६ से क्रम से प्रथम रूप में 'फ' का 'भ' और द्वितीय रूप में 'फ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से सभल और सहलं दोनों ही रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
शेफालिका संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सेमालिया और सेहालिया होते हैं। इनमें सूत्रसंख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १.२३६ से 'फ' का क्रम से प्रथम रूप में 'भ' और द्वितीय रूप में 'फ' का 'ह'; और १-१७७ से 'क' का लोप होकर कम से सेभालिआ और सेहालिआ दोनों ही रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
शफरी संस्कृत रूप है । इसके 3 अकृत रूप समरी और सहरी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श'; का 'स'; १-२३६ से कम से 'फ' का 'भ' प्रथम रूप में और 'फ' का 'ह' द्वितीय रूप में होकर दोनों सभरी और सहरी रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
गुफति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद का रूप है । इसके प्राकृत रूप गुभइ और गुहइ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२३६ से क्रम से 'फ' का 'भ' प्रथम रूप में और 'फ' का 'ह' द्वितीय रूप में और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से अभइ और गुहइ दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
गुम्फति संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है; इसका प्राकृत रूप गुफा होता है। इसमें सूत्र-संस्त्या १-२३ से 'म् का अनुस्वार और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुंफा रूप सिद्ध हो जाता है।
पुष्पम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पुप्फ होता है । इसमें सूत्र संख्या २-५३ से 'प' का 'फ'; २-८८ से प्राप्त 'फ' का द्वित्व "फ'; २-० से प्राप्त पूर्व 'क' का 'प्', ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पुष्पं रूप सिद्ध हो जाता है।
चिट्ठह रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१९९ में की गई है।