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* प्राकृत व्याकरण *
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तिष्ठति संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप ठाइ होता है । इसमें सूत्रसंख्या ४-१६ से संस्कृत धातु 'स्था' के आदेश रूप 'तिष्ठ' के स्थान पर 'ठा' रूप आदेश को प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ठाइ रूप सिद्ध हो जाता है। ॥ १-९६६ ||
अङ्कोठे ल्लः ॥ १-२०० ।। अकोठे ठस्य द्विरुक्तो लो भवति ।। अकोल्ल तेलतुप्पं ।।
अर्थ:--संस्कृत शठन अकोठ में स्थित '४' का प्राकृत रूपान्तर में द्वित्व 'ल्ल' होता है । जैसे अकोट तैल वृतम् अकोल्ल-तेल्ल-तुप्पं ।।
__ अंकोठ संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप अकोल्ल होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२०० से 'ट' के स्थान पर द्वित्व ल्ल' की प्राप्ति होकर पल हर शिव हो जाताएं:
तैल संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप तेल्ल होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१४८ से 'गो के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और २-६८ से 'ल' को द्वित्व 'ल्ल' की प्राप्ति होकर 'तेल्ल' रूप सिद्ध हो जाता है।
वृत्तम संस्कृत रूप है। इसका देश्य रूप तुरुपं होता है। इसमें सुत्र संख्या का अभाव है; क्यों कि तम् शब्द के स्थान पर तुप्पं रूप की प्राप्ति देश्य रूप से है। अतः तुप्पं शब्द रूप देशज है; न कि प्राकृत ज ।। तदनुसार तुप्प देश्य रूप में ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर देश्य रूप तुष्पं सिद्ध हो जाता है । ॥ १-२००।
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पिठरे हो वा रच डः ॥ १-२०१॥ पिठरे ठस्य हो वा भवति तत् संनियोगे च रस्य हो भवति ।। पिहडो पिढरो॥
अर्थ:-पिठर शब्द में स्थित 'ठ' का वैकल्पिक रूप से 'ह' होता है। अतः एक रुप में 'ठ' का 'ह' होगा और द्वितीय रुप में वैकल्पिक पन होने से 'ठ' का 'ढ' होगा । जहाँ 'ठ' का 'ह' होगा; वहां पर एक विशेषता यह भी होगी कि पिठर शब्द में स्थिन र'का 'ड' होजायगा । जैसे:-पिठर:-पिहो अथवा पिढरो।
पिठरः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रुप पिहडी और पिटरी होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२०१ से 'ठ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ह' की प्राप्ति और इसी सूत्रानुसार 'ह' की प्राप्ति होने से 'र' को 'ड' की प्राप्ति तथा ३-२ से प्रथमा विभावत के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रुप पिहाडो सिद्ध हो जाता है।