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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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भरतः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप भरहो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२१४ से 'त' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भरहो रूप सिद्ध हो जाता है ।
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कातरः संस्कृत विशेषण है। इसका ताटलीत है। इनमें सूत्र संख्या १- २०४ से त' के स्थान पर 'ह' को प्राप्ति; १-२५४ से 'र' के स्थान पर 'ल' की पात्रि और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारन्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर काहलो रूप सिद्ध हो जाता है ।
मातुलिंगम, संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप माहुलिंगं होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-२१४ से 'तू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्तिः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर माहुलिंगं रुप सिद्ध हो जाता है ।
मातुलुङ्गम्, संस्कृत रूप हैं । इसका प्राकृत रूप माउलुन होता है। इसमें मूत्र- मंख्या १- १७७ से 'तू' का लोप; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'मि प्रत्यय के स्थान पर 'स्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-०३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर माउलुङ्गम् रूप सिद्ध हो जाता है ।
॥ १-२१४ ।।
मेथि-शिथिर - शिथिल -प्रथमे थस्य ढः ॥ १-२१५ ॥
एषु थस्य हो भवति । हापवादः || मेढी । सिढिलो | सिटिलो । पढमो ॥
अर्थ: सूत्र संख्या १- १८७ में यह विवान किया गया है कि संस्कृत शब्दों में स्थित 'थ' का प्राकृत रूपान्तर में 'ह' होता है । किन्तु यह सूत्र उक्त सूत्र का अपवाद रूप विधान है। तदनुसार मेथि; शिथिर; शिथिल और प्रथम शब्दों में स्थित 'थ' का 'ढ' होता है । जैसे:-मेथि: - मेढी; शिथिरः = सिढिलो; शिथिल'- सिढिलो और प्रथमः पदमो || इस अपवाद रूप विधान के अनुसार उपरोक्त शब्दों में 'थ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं होकर 'द' की प्राप्ति हुई है ।
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माथः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मेढी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६५ में 'थ' के स्थान पर द' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर मेढी रूप सिद्ध हो जाता है।
afr: संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप सिढिलो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२१५ से 'थ' के स्थान पर 'ढ' को प्राप्तिः १-२५४ से 'र' का 'ल' और ३-२ से प्रथमा