________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
[२५१
upted संस्कृत सकर्मक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप पलीवेद्द होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ मे 'र' का लोप; १-२२१ से 'द' का 'ल'; १-२३५ से 'प' का 'व'; ३-१४६ से प्रेरणार्थक प्रत्यय '' के स्थानीय प्रत्यय 'अय के स्थान पर 'ए' रूप आदेश की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक बचन में 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पलीद रूप सिद्ध हो जाता है।
प्रदीप्तम् संस्कृत विशेषण हैं। इसका प्राकृत रूप पलित्त होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ से 'र्' का लोपः १-२२१ से द' का 'ल'; १-८४ से दीघ 'ई' की हस्थ 'इ'; २७७ से 'प' का लोप २-८६ से 'त को द्वित्वत' की प्राप्तिः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पलित्तं रूप सिद्ध हो जाता है।
ही रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२१७ में की गई है । ।। १-२२१ ।।
कदम्बे वा ।। १-२२२ ॥
कदम्य शब्दे दस्ग लो वा भवति ॥ कलम्बो । कम्बो ||
अर्थ:--कदम्ब शब्द में स्थित 'द' का बैकल्पिक रूप से 'ल' होता है । जैसे:- कदम्बः = कलम्ची अथवा कयम्बो ||
कदम्बः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कलम्बो अथवा कम्बो होते हैं । प्रथम रूप में सूत्रसंख्या १-२२२ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ल' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप कलम्बा सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूपयो की सिद्धि सत्र संख्या १३० में की गई है ।। १-२२२ ।
दीपो धो वा ॥
१-२२३ ॥
दीप्यत दस्य भो वा भवति || त्रिप्प | दिप्प ||
अर्थ-दीप धातु में स्थित '' का वैकल्पिक रूप से 'ध' होता है। जैसे- दीप्यते धिप्पड़ अथवा दिप ||
dharatee क्रिया का रूप हैं। इसके प्राकृत रूप धिप्पद और दिप्पद होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ 'ई' की ह्रस्व '' १-२२३ से 'द्र' का वैकल्पिक रूप से धूप से यू' का लोप; २-८६ से '१' का द्वित्व 'पप'; और ३-१३६ से वर्तमान काल के एक दवन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति होकर दोनों रूप विपद और विप्पद क्रम से सिद्ध हो जाते हैं । ।। १-२५३ ।।