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*प्राकृत व्याकरण *
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वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर माणड़ रूप सिद्ध हो जाता है ।
आरनाल य संस्कृत रूप है। इमका याप-प्राात में आरनालं ही रूप होता है । इसमें सूत्र संख्या ३.०५ से प्रथमा विक्ति के एक क्चर में अकारान्त नपुसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५.२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर आरनालं रूप सिद्ध हो जाता है।
आनिल! और अनलः संस्कृत रूप । आप-प्राकृत में इनको रूप क्रम में अनिलो और अनला होते हैं । इनमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा वर्मा के एक बनन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम में आनिलो और अनलो रूप सिद्ध हो जाते हैं। ॥ १-२२८ ।।
वादौ ॥ १-२२६ ॥ असंयुक्तस्यादौ वर्तमानस्य नस्य गो वा भवति । गरो नरो । णई नई । णेइ नेइ । असंयुक्तस्येत्येव । न्यायः । नायो ।
अर्थ:-किन्हीं किन्हीं शब्दों में ऐमा भी होता है कि यदि 'न' वर्ण आदि में स्थित हो और वह असंयुक्त हो; याने हलन्त न होकर स्वरान्त हो; तो उस 'न' का वैकल्पिक रूप से 'ण' हो जाया करता है । जैसे:-नरः= रणरो अथवा नरो । नदी गई अथवा नई ।। नेतिणे अथवा नेइ ।
प्रश्नः शब्द के श्रादि में स्थित 'न' असंयुक्त होना चाहिये' ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-यदि शब्द के यादि में स्थित होता हुआ भी'न'वर्ण हलत हुआ; संयुक्त हुआ तो उस 'न' वर्ण का 'ण' नहीं होता है ऐसा बतलाने के लिये 'असंयुक्त विशेषर का प्रयोग किया गया है । जैसे:न्याया-नायो।।
नरः संस्कृत रूप है इसके प्राकृत रूप णरो और नरो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या :.:२६ से 'न' का वैकल्पिक रूप से 'ण' और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से परो और नरों दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
नदी संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप णई और नई होते हैं। इनमें सुत्र संख्या १-२२६ से'न' का Jफल्पिक रूप से 'ण' और १-१७७ से 'द' का लोप होकर गई और नई दोनों रूप क्रम से सिद्ध होजाते हैं।
नेति संस्कृत श्रव्यय है । इसके प्राकृत रूप णेर और नेह होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.२२६ से 'न' का बल्पिक रूप से 'ण' और १-१५७ से 'तू' का लोप होकर गइ और नेइ दोनों रूप क्रम से सिद्ध हो जाते हैं।
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