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स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डरो और करो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
वाहः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप डोहो और दाहो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डाहो और दाहो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
* प्राकृत व्याकरण *
दम्भ : संस्कृत रूप है इसके प्राकृत रूप डम्भो और दम्भो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२१७ से 'द' का 'कल्पिक रूप से 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डम्मी और दम्भो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
दर्भः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप डब्भो और भी होते हैं। इनमें सूत्र- संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; २ ७६ से 'र' का लोप; २-५६ से 'भ' का द्वित्व 'म' २०१० से प्राप्त पूर्व 'भू' का 'बू'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डम्मी और दम्भी दोनों रूप कम से सिद्ध हो जाते हैं ।
कदम संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कहां और कयणं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-०१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-१७७ से 'दु' का लोप तथा ११८० से लोप हुए 'द' में से शेष रहे हुए 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १-२२८ से दोनों रूपों ''न' का 'ण'; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर कडणं और कयणं दोनों रूप क्रम से सिद्ध हो जाते हैं ।
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sher: संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप डोहली और दोहली होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२१७ से प्रथम 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १.२२१ से द्वितीय 'द' का 'ल': और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डोहलो और diet दोनों रूप क्रम से सिद्ध हो जाते हैं ।
दर-दलितम, संस्कृत विशेषण रूप हैं। इसका प्राकृत रूप दर दलिश्रं होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'तू' का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'मू' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२२ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दर-टि रूप सिद्ध हो जाता है । ।।१-२१७
दंश-दहोः || १ - २९८ ॥
अनयोर्धात्वोर्दस्य डो भवति ॥ सइ | डहइ ||