________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
[२३१
डिम्म संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप डिम्भो होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डिम्भो रूप सिद्ध हो जाता है।
बडिश र संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप धलिस और वडिस होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२३७ से 'ब' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; १.२०२ से चकल्पिक विधान के अनुमार 'ड' के स्थान पर विकल्प रूप से 'ला की प्राप्ति; १-२६० से 'श' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्रात 'म' का अनुस्वार होकर वलिस और पडिस रूप सिद्ध हो जाते हैं।
3
दाडिमम् संस्कृत रुप है । इसके प्राकृत रुप दालिम और दाडिमं होते हैं। इनमें सूत्र- संख्या १.२०२ से बैक लेक विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से दालिमं और दाडिम रूप सिद्ध हो जाते हैं।
शुद्धः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप गुलो और गुडो होते हैं । इनमें सूत्र- संख्या १.२०२ से वैकल्पिक-विधान के अनुपार विकल्प से 'इ' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुलों और गुलो रूप सिद्ध हो जाते है।
नाडी संस्कृत रूप है । इसमें प्राकृत रूप णाली और णाडी होते हैं। इनमें सूत्र- संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण की प्राप्ति और १-२०२ से धैकल्पिक- विधान के अनुसार विकल्प से '' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति होकर णाली और णाडी रुप सिद्ध हो जाते हैं।
नडम संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप णलं और एड होते हैं। इनमें सूत्र- मख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिः, १-२०२ से वैकल्पिक- विधान के अनुसार विकल्प से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारांत नपुसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर णलं और गडं रूप सिद्ध हो जाते है।
भामेली रूप की सिद्धि सूत्र- संख्या?–१०५ में की गई है।
आपीडः मंस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रूप ामेडो होता है। इलमें सूत्र-संख्या १-२३४ से वैकल्पिक रूप से 'प' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-१०५ से 'ई के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय की प्राप्ति हो कर आमेडो रुप सिद्ध हो जाता है।