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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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द्वितीय रूप में सूत्र- संख्या १-१६६ से वैकल्पिक पक्ष होने से '४' के स्थान पर 'द' की प्राप्ति और ३.२ से 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रुप पिडरी भी सिद्ध हो जाता है ।।५-२० ॥
डोलः॥ २०२॥ स्त्ररात् परस्यासंयुक्तस्थानादेर्डस्य प्रायो लो भवति ।। बडवामुखम् । वलयामुई ॥ गहलो !। तलाय । की । स्वादिलोन | मोडं । कोंडं । असंयुक्तस्येत्येव । खग्गो ।। अनादेरित्येव । रमह डिम्भो ॥ प्रायो ग्रहणात् क्वचिद् विकल्पः । यलिसं वडिस । दालिमं दाडिमं । गुलो गुडो । णाली णाडी। णलं गडं । आमेलो आवेडी || क्वचिन्न भवत्येव । निविडं । गउड़ो । पीडिभं । नीडं । उडू तडी ।।।
अर्थः- यदि किमी शब्द में 'तु' वर्ण स्वर से परे रहता हुया संयुक्त और अनादि रूप हो; अर्थात् हलन्त - ( स्वर रहित ) भी · न हो तथा प्रादि में भी स्थित न हों; तो उस 'ड' वर्ण का प्रायः 'ल' होता है। जैसे- वडवामुखम्= वलयामहं । गरुडः = गरुलो ।। तडागम् = तलायं । कोइति= कीलइ ।।
परन:-..." स्वर से पर रहता हुआ हो" ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ड' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं होगा तो उस 'ड' का 'ल' नहीं होगा । जैसे:- मण्डम= मोड और कुण्डम= कोंड' इत्यादि ।
प्रश्नः- ' संयुक्त याने हलन्त नहीं होना चाहिये; अर्थात् असंयुक्त याने स्वर से युक्त होना चाहिये ' ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- क्योंकि यदि किसी शब्द में 'डः वर्ण संयुक्त होगा - हलन्त होगा - स्वर से रहित होगा, तो उस 'ड' वर्ण का 'ल' नहीं होगा । जैसे:- खड गः= खग्यो ।
प्रश्नः-- "अनादि रूप से स्थिन हो; शब्द के श्रादि स्थान पर स्थित नहीं हो; शब्द में प्रारंभिकअक्षर रूप से स्थित नहीं हो; ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:- क्योंकि यदि क्रिसी शत्र में 'ड' वर्ण आदि अक्षर रूप होगा; तो उस 'दु' का 'ल' नहीं होगा । जैसे:-- रमते डिम्भः- रमह डिम्भी॥
प्रश्न:- "प्रायः " अव्यय का प्रहण क्यों किया गया है ?
उत्तर:-"प्रायः " श्राव्यय का उल्लेख यह प्रदर्शित करता है कि किन्हीं किन्ही शब्दों में 'ड' वर्ष स्वर से परे रहता हुआ; असंयुक्त और अनादि होता हुआ हो तो भी उस 'ड' वर्ण का 'ल' वैकल्पिक रूप से होता है । जैसे:-- विशम् = वलिम अथवा वडिसं ॥ दाडिमम् = दालिम अथवा दाडिमं ॥ गुड: