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* प्राकृत व्याकरण *
गुलो अथवा गुडो ॥ नाटी णाली अथवा गाडी । नम्= रणलं अथवा गृह ॥ अापीडः= अामलो अथवा पामेडो ।। इत्यादि !!
किन्हीं किन्हीं राठों में 'ड' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ; आमंयुक्न एवं अनादिकप हो; तो भी उस'डवर्ण का 'ल' नहीं होता है। जैसे:-- निबिडमनिबिड ।। गौडः= गउहा ।। पीइतम पीडिअं॥ नीडम् नोड ।। उडुः = उडू ।। तडित- तप्डो ॥ इत्यादि ।
वडवामुखम:- संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वलयामह होता है । इसमें सूत्र- संख्या १-२८२ से 'दु' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'व' का लोप; १-१८० से लुप्म 'व' में से शेष 'या' के स्थान पर 'या' की प्राग्नि; १-१८७ से 'ख' को 'ह' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अन्नारान्त नपुंसक लिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राति और १-.३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर वलयामुहं रुप सिद्ध हो जाता है। गरुडः संस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रुप गरुलो होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो प्रत्यय की प्राप्ति होकर गहलो रूप सिद्ध हो जाता है।
___तडागम् संस्कृत रूप है ! इसका प्राकृत रूप तलार्य होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२२ से 'ह' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से 'ग्' का लोपः १-१८० मे तुप्त 'ग' में से शेष 'श्र' को 'य' की प्राप्ति; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तलाय रूप सिद्ध हो जाता है।
कीडति संस्कृत अकमक क्रिया का रूप है । इसका प्राकृत रूप कीलइ होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७ से 'र' का लोप; १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कीलइ रूप सिद्ध हो जाता है।
मोडं रूप की सिद्धिः सूत्र संख्या १-११६ में की गई है।
कुण्डम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कोंड होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११६ से 'उ' के स्थान पर 'ओं की प्राप्ति; १-२५. से 'ए' के स्थान पर पूर्व व्यजन पर अनुस्वार की शानि; ३.८५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की गति और १-२३ से प्राप्त “म' का अनुस्वार होकर कोडं रूप सिद्ध हो जाता है।
खग्गी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३४ में की गई है।
रमते संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसको प्राकृत रूप रमइ होता । इसमें सूत्र संख्या ३-१३६ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रमह रूप सिद्ध हो जाता है।