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* प्राकृत व्याकरण
डिम् संस्कृत विशेष रूप है। इसका प्राकृत रूप निबिड' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-०३ से 'भू' का अनुस्वार होकर निविडं रूप सिद्ध हो जाता है ।
गउडो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६२ में की गई है।
पीडितम् संस्कृत विशेष रूप है। इसका प्राकृत रूप पीड होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'तू' का लोप: ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पीडिओ रूप सिद्ध हो जाता है।
नी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०६ में की गई हैं ।
उ: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप उडू होता है। इसमें सूत्र संख्या ३ १६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हम्ब स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर जडू रूप सिद्ध हो जाता हैं।
तद - ( अथवा तडित् ) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तडी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से 'दू' अथवा 'तू' का लोप और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्री लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' को प्राप्ति होकर तड़ी रूप सिद्ध हो जाता है | ॥१-२०२
वेणौ णो वा ॥ १ - २०३ ॥
वेणौ णस्य लो वा भवति || वेलू | वेणू ||
अर्थः- बेगु शब्द में स्थित 'ए' का विकल्प से 'ल' होता हैं। जैसे:--वेणुः = बेलू श्रथवा वेणू || संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप बेलू, और वेणू होते हैं। इनमें सूत्र संख्या - २०३ से 'ग'
के स्थान पर विकल्प से 'ल' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर बेलू और वे रूप सिद्ध हो जाता है । । ६- २०३ ॥
तुच्छे तश्च - छौ वा ॥
१-२०४ ॥
तुच्छ शब्दे तस्य च छ इत्यादेशौ वा भवतः ॥ चुच्छं । हुच्छं | तुच्छं ॥
अर्थ:- तुच्छ शब्द में स्थित 'तू' के स्थान पर वैकल्पि रूप से और क्रम से 'च' अथवा 'छ' का प्रदेश होता है । जैसे:- तुच्छम् तुच्छं अथवा लुच्छं अथवा तुच्छं ॥
तुच्छम् संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप चुच्छं; छुच्छं और तुच्छं होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-२०४ से 'तू' के स्थान पर क्रम से और वैकल्पिक रूप से 'चू' अथवा 'छ' का आदेश: ३ २५ से