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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित -
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प्रतिमा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पडिमा होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप थौर १-२०६ से 'त' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति होकर पाडमा रूप सिद्ध हो जाता है ।
पार्डधया रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-४४ में की गई है। पडतुआ रुप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२६ में की गई है।
प्रति करोति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप पद्धिकरइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या -७ से प्रथम 'र' का लोप;; १-२०६ से प्रथम 'त' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; ४-२३४ से 'करो' क्रिया के मूल रुप 'कृ' धातु में स्थित 'ऋ' के स्थान पर 'अर्' की प्राप्ति; ४-२३६ से प्राप्त 'अर्' में स्थित हलन्त 'र' में 'अ' रूप श्रागम की प्राप्ति, और ३-१३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पडिकरइ रूप सिद्ध हो जाता है।
पहाई रूप की सिद्ध सूत्र - संख्या १-१३7 में की गई है। पाहुडं रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-१३१ में की गई है।
ध्यापूतः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप वावडो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-४ से ' का लोप; १.९२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राति; १-२०६ से 'त' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुलिलग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओं प्रत्यय की प्राप्ति होकर पावडो रुप सिद्ध हो जाता है।
पताका संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पडाया होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२०६ से 'त्' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; १-१४७ से 'क' का लोप और १-१८० से लुप्त 'क' में से शेष रहे हुए 'श्रा के स्थान पर 'या होकर पडाया रुप सिद्ध हो जाता है।
बहेडओ रूप की सिद्धि सूत्र • संख्या १-८८ में की गई है। हरडई रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-९९ में की गई है।
मृतकम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मडयं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-२०६ से 'न' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'क' में से शेष 'अ' का 'य' की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मडयं रूप की सिद्धि हो जाती हैं।
दुष्कृतम, संस्कृत रूप है । इसका पाप-प्राकृत में दुबकड रूप होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७४ से 'प' का लोप; १-५२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ की प्राप्ति; २-८८ से 'क' को द्वित्व 'क' को प्राप्ति