________________
સુરસ્વતિહેન મણીલાલ શાન
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[२२५
अटति संस्कृत अकर्मक क्रियापद को रूप है। इसका प्राकृत रूप अदर होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अट रूप सिद्ध हो जाता है । ।। १-१६५ ।।
सटा-शकट-कैटभे ढः ॥ १-१६६ ॥ एषु टस्य ढो भवति ।। सहा । सयढो । केढयो ।
अर्थः-सटा, शकट और कैटभ में स्थित 'ट' का 'ढ' होता है। जैसे:-सटा- सदा ।। शकटःसयढो ॥ कैटभः= केढवो ।।
सटा संस्कृत स्त्री लिंग रूप हैं। इसका प्राकृत रुप सदा होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१६६ से '' का 'ढ'; संस्कृत- व्याकरण के अनुसार प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त स्त्रीला में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' का इःसंज्ञानुसार लोप और १-५१ से शेष 'म्' का लोप होकर सदा रूप मिट हो जाता है।
शकटः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रुप सयहो होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१८० से लुप हुर 'क' में स्थित 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १-१६६ से 'ट; का 'ढ' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारांत पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सबढो रूप सिद्ध हो जाता है। केदयो रूप की सिद्धि सत्र-संख्या १-१४८ में को गई है। १-१६६ ॥
स्फटिके लः ॥ १-१६७ ॥ स्फटिके टस्य लो भवति ।। फलिहो ।। अर्थः स्फटिक शब्द में स्थित 'ट' वर्ण का ल' होता है । जैसे:- स्फटिकः- फलिहो । फलिहो रूप को सिसि सूत्र- संख्या १-१८६ में की गई है।॥ १-१६७ ।।
चपेटा--पाटो वा ।। १ - १६८ ॥ चपेटा शब्दे ण्यन्ते च पदि धातो टस्य लो वा भवति ॥ चविला चविडा । फालेइ फाडे ।
अर्थ:-चपेटा शब्द में स्थित 'ट' का विकल्प से 'ल होता है । तदनुसार एक रूप में तो 'ट' का 'ल' होगा और द्वितीय रूप में वैकल्पिक पक्ष होने से 'ट' का 'ड' होगा। जैसे:- चपेटा= चविला अथवा चविडा । इसी प्रकार से 'पटि धातु में भी प्रेरणार्थक क्रियापद का रूप होने की हालत में 'ट' का वैकल्पिक रूप से 'ल' होता है। तदनुसार एक रूप में तो 'ट' का 'ल' होगा और द्वितीय रुप में चैकल्कि पक्ष होने से 'ट' का 'ढ' होगा | जैसे:- पाटयनि- फालेइ और काडेइ ।।