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*प्राकृत व्याकरण *
स्थान पर अर्थात 'इष' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'उम' आदेश की प्राप्ति हुआ करती है। जैस-निषण्णः = गुमण्णो और णिसएणो ।।
निषण्णः संस्कृत विशेषण रुप हैं। इसके प्राकृत रुप णुमएणो और णिसगणो होते हैं । इनमें से प्रथम रुप गुमरणो में सूत्र संख्या १-०२८ से 'न्' का 'ण'; १-१७४ से आदि स्वर 'इ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'ष' व्यजन के स्थान पर अर्थात् 'इष' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'उम' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रुप घुमण्णो सिर हो जाता है।
द्वितीय रुप णिसएणो में सत्र संख्या १-२२८ से 'न्' का 'ण'; १-२६० से 'ष' का 'स' और ३-२ सप्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के ध्यान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रुप णिसण्णो भी सिद्ध हो जाता है । ।।२-१७४||
प्रावरणे अङ्ग्वाऊ ॥ १-१७५ ॥ प्रावरण शब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्त्रस्यजनेन सह अङ्ग, आउ इत्येतावादेशी या भवतः ।। पङ्ग रर्ण पाउरणं पावरयां ।।
अर्थः-प्रावरणम् शब्द में स्थित श्रादि स्वर श्रा' सहित परवर्ती स्वर सहित 'व' व्यजन के स्थान पर अर्थात् 'भाव' शब्दांश के स्थान पर धैकल्पिक रूप से और क्रम से 'अङ्ग ' और 'पाउ' श्रादेशों की प्राप्ति हुश्रा करती है । जैसे-प्रावरणम् पङ्ग रणं, पाउ रणं और पावरणं ।
मावरणम् संस्कृत रुप है । इसके प्राकृत रुप पअंगुरणं, पाऊरणं और पावरण होते हैं। इनमें से प्रथम रुप पन रणं में सूत्र संख्या २-५६ से 'र' का लोप: १-१७५ से आदि स्वर 'आ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'व' व्यञ्जन के स्थान पर अर्थात् 'भाव' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'अङ्ग' आदेश की प्राप्ति; ३.२५से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसक-लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप पनपारणं सिर हो जाता है ।
द्वितीय रूप पाउरण में सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप; १-५७५ से 'आव' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'श्रांज' आदेश की प्राप्ति और शेष सिद्धि प्रथम प के समान ही होकर द्वितीय रूप पाउरण भी सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप पावरणं में सूत्र-संख्या २-5 से 'र' का लोप; और शेष सिद्धि प्रथम प के समान ही होकर तृतीय रूप पावरण भी सिद्ध हो जाता है। ॥ १-१७५ ।।