________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर संबुडो रूप मिद्ध हो जाता है।
संघरः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप स'वरो होता है। इसमें सत्र संख्या ३-२ से प्रयमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर संवरो रूप सिद्ध हो जाता है।
__ अर्कः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अक्को होता है । इसमें सूत्र संख्या २-5 से 'र' का लोप; 4 से शेष 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अक्को' रूप सिद्ध हो जाता है ।
वर्गः संस्कृन रूप है । इसका प्राकृत रूप वग्गो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७E से 'र' का लोप; २-६ से शेष 'ग' को द्वित्व 'ग' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वग्गो रूप सिद्ध हो जाता है।
अर्चः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अच्चो होता है । इसमें सूत्र संख्या २७ से 'र' का लोप; २-८८ से शेष 'च' को द्वित्व 'च्च' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अच्चों' रूप सिद्ध हो जाता है।
धजम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वज्ज होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७६. से 'र' का लोप; २.८६ से शेष 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर कज्ज रूप सिद्ध हो जाता है। - धूर्तः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप धुत्तो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ 'ऊ' का ह्रस्व 'उ'; २-७६ से 'र' का लोप, २-८६ से शेष 'त' का द्वित्व 'स' और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भुत्तो रूप मिद्ध हो जाता है।
___ उद्दामः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप उछामो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर उद्दामो रूप सिद्ध हो जाता है।
_ विप्रः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप विप्पो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप; २-८८ से शेष 'प' को द्वित्व 'प्प की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पिप्पो रूप सिब हो जाता है।
कार्यम् संस्कृत विशेष रूप है । इसका प्राकृत रूप कज्ज होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से