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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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प्रगुणः संस्कृत विशेषण रूप हैं । इसका प्राकृत रूप पडणो होता है। इसमें सूत्र- संख्या २०१६ से 'र' का लोप; १-१७७ से ग् का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पउणो रूप सिद्ध हो जाता है ।
प्रचुरम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसता प्राकृत रूप परं होता है। इसमें सूत्र- संख्या २७६ से 'र' का लोप; १-२७७ से 'च्' का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पञ्जरं रूप सिद्ध हो जाता है।
राजीवम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप राई होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'ज्' का लोप ३ २५ से प्रथमा विभक्ति में एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर राई रूप सिद्ध हो जाता है।
निहतः संस्कृत विशेषण रूप हैं। इसका प्राकृत रूप निह होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-१७७ से 'त' का लीप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निहओ रूप सिद्ध हो जाता है ।
वायुः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप बाऊ होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'यू' का लोप और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर बाऊ रूप सिद्ध हो जाता है ।
कई रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १- १२८ में की गई है ।
लोकस्य संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप लोअस्स होता है। इसके सूत्र संख्या १-१७७ से 'कू' का लोप और ३-१० से षष्ठी विभक्ति के एक वचन में 'ङस्' प्रत्यय के स्थान पर 'रूप' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लोअर रूप सिद्ध हो जाता है।
देवर: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप देअरी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ 'व्' का लीप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अरो रूप सिद्ध हो जाता है ।
पिवति संस्कृत सकर्मक क्रिया रूप है। इसका प्राकृत रूप पियह होता है। इसमें सूत्र संख्या १- १७७ से 'व' का लोप; १-१०० से शेष 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पियह रूप सिद्ध हो जाता है।