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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से सीभरो, सीहरी और सीमरो रूप सिद्ध हो जाते हैं ।।१९८४ ॥
चंद्रिकायां मः ॥ १-१८५ ॥
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चंद्रिका शब्द कस्य मो भवति ॥ चं देमा ||
अर्थ :-- चन्द्रिका शब्द में स्थित 'कू' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति होती है । जैसे:- चंद्रका= चन्दिमा ||
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चन्द्रिका संस्कृत रुप है । इसका प्राकृत रूप चन्दिमा होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ से 'र' का लोप और १-१८५ से 'क' के स्थान पर 'म' को प्राप्ति होकर चन्द्रमा रूप सिद्ध हो जाता है । १-१८५ निकष- स्फटिक चिकुरेहः ॥ १०९८६ ॥
एषु क्रस्य हो भवति || निहो । फलिहो चिहुरो | चिहुर शब्दः संस्कृतेपि इति दुर्गः ॥
अर्थः- निकष, स्फटिक और चिकुर शब्दों में स्थित 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है । जैसे-निकषः=निहसो | स्फटिकः =फलिहो । चिकुरः चिहुरी || चिहुर शब्द संस्कृत भाषा में भी होता है; ऐसा दुर्गकोष में लिखा हुआ है ।
free: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप निहसो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८६ से 'क' के स्थान पर हो की प्राप्ति; १-२३० से 'प' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निहस रूप सिद्ध हो जाता है।
स्फटिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप फलिहो होता है। इसमें सूत्र संख्या में 'स' का लोपः १-५६७ से दू' के स्थान पर 'लू' की प्रामि १-१८६ से 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फलिहो रूप सिद्ध हो जाता है ।
ख-घ -थ-ध-- भाम् ॥ १--१८७ ॥
चिकुरः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप चिहुरी होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-१८६ से 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चिह्नरो रूप सिद्ध हो जाता है।
।। १-१८६ ।।
स्वरात् परेषामसंयुक्तानामनादिभूतानां ख घथ ध म इत्येतेषां
वर्णानां प्रायो हो भवति । ख । साहा | मुई | मेहला | लिहड़ । घ । मेहो जहणं । माहो लाइ । थ | नाही | आवसही । मिणं । कहह । श्र । साहू । वाहो । बहिरो । बाहर | इन्द- ह || भ
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