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* प्राकृत व्याकरण -
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में स्त्रीलिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' की इसंज्ञा तथा १-११ से शेष अन्त्य 'स्' का लोप होकर कथा रूप मिद्ध हो जाता है।
बन्धः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप रंघो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-५ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान एर 'यो प्रत्यय की प्राप्ति होकर धो रुप सिद्ध हो जाता है।
स्तम्भः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत का खंभो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २८ से 'स्त' के । स्थान पर 'ख' की प्राप्ति १-२६ की वृत्ति से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खंभी रूप सिद्ध हो जाता है।
आख्याति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद रुप है। इसका प्राकृल कर अक्खद होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-८४ से आदि 'श्रा के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २.७८ से 'य्' का लोप; २-८६ से शेष 'ख' को द्वित्व 'खूख' की प्राप्ति; -7 से प्राप्त पूर्शन, को 'क' की प्राप्ति; ४-०३८ से 'खा' में स्थित 'या' को 'अ' की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अक्खड़ रूप सिद्ध हो जाता है ।
अयते संस्कृत कर्म भाव-वाफ्य क्रिया पद रूप है । इसका प्राकृत रूप अग्य होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४६ से 'र' का लोप; २.७८ से 'य' का लोप; ६ से शेष 'घ' को द्वित्व घघ' की प्राप्तिः २-६० से प्राप्त पूर्व 'घ' को 'ग' की प्राप्ति; ३-१३६. से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अग्घर रूप सिद्ध हो जाता है।
कथ्यते संस्कृत कर्म भाव-वाच्य क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत-रूप कत्थइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-६८ से य' का लोप; २-८८ से शेष 'थ' को द्वित्व 'थ्थ' की प्राप्ति; २-१० से प्राप्त पूर्ष 'थ' को 'न' को प्राप्ति; ३-१७७ से कर्म भाव-बाल्य प्रदर्शक संस्कृत प्रत्यय य' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तब्य ज्ज अथवा 'ज्जा' प्रत्यय का लोप और ३-५३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'त' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कत्थई रूप सिद्ध हो जाता है।
सिधकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सिद्धभी होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७६. से 'र' का लोप; २-८८ से शेप. "ब' को द्वित्व 'ध' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'ध्' को 'द्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सिद्धओ रूप सिद्ध हो जाता है।
. बध्यते संस्कृत यम भाव-वाच्य क्रिया पर रूप है । इसका प्राकृत रूप बन्या होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-१४७ से कर्म भाव-वाच्य प्रदर्शक संस्कृत प्रत्यय 'य' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तम्य 'जज'