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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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श्रथवा 'ज्जा' प्रत्यय का लोप; ४-२३६ से शेष हलन्त 'ध' में 'अ' की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बन्धक रूप सिब हो जाता है।
लभ्यते संस्कृत कर्म भाव-याच्य क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप लभइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२४६ से कर्म-भाव-घोच्य 'य' प्रत्यय का लोप होकर शेष 'भ' को द्वित्व भभ की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'भ' को 'च' की याति ५.२३६ से नान्न भ में 'श्र' की प्राप्ति और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सभा रूप सिक हो जाता है।
___ गर्जन्ति संस्कृत अकर्मक क्रियापद रुप है । इसका प्राकृत रूप गज्जन्ते होता है। इसमें भूत्रसंख्या २-७६ से 'र' का लोप; २-८८ से 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' को प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के बहु वचन में संस्कृत प्रत्यय 'न्ति' के स्थान पर 'न्ने प्रत्यय को प्राप्ति होकर गचन्ने रूप सिद्ध हो जाता है।
खे संस्कृत रुप है । इसका प्राकृत रूप भी खे ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में 'कि' प्रत्यय के स्थान पर 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खे' रुप सिद्ध हो जाता है।
मेघा: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रुप मेहा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' को 'ह' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में प्राप्त 'जस्' प्रत्यय का लोप तथा ३-१२ से प्रान होकर लुप्त हुए जस प्रत्यय के कारण से अन्त्य 'अ' को श्रा' की प्राप्ति होकर मेहा रुप मिद्ध हो जाता है
गच्छत्ति संस्कृत सकर्मक क्रियापद रुप है। इसका प्राकृत रूप गच्छा होता है। इसमें सूत्रसंख्या ४-२३६ से गच्छ धातु के हलन्त छ.' में विकरण प्रत्यय 'अ' को प्राप्ति; और ३-१३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गच्छन रूप सिद्ध हो जाता है।
घणो रुप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७२ में की गई है।
सर्प-खलः संस्कृत विशेषण रुप है। इसका प्राकृत रुप सरिसव-खलो होता है। इसमें सूत्रसंख्या २-१०५ से प' शब्दांश के पूर्व में अर्थात् रेफ रुप २' में श्रागत रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२६० से 'प' का 'स'; १-२३१ से 'प' का 'व'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सरिसक-खलो रूप सिख हो जाता है।
प्रलय संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पलय होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७६ से 'र' का लोप होकर पलय रुप सिद्ध हो जाता है।
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