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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
'ए' की मानि; १-१७५ से तुम्' प्रत्यय में स्थित 'त्' का लोप और १-०३ से अन्त्य 'म्' का अनुस्वार हो कर बंधे रूप सिद्ध हो जाता है ।
कजक संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कुजय होता है । इसमें सूत्र- मख्या २-से 'ब्' का लोप; २-८८ से 'ज' को द्वित्व 'जन्न' की प्राप्ति; १.१७७ से द्वितीय ' का लोप और १-८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति होकर कुज्जय रूप सिद्ध हो जाता है।
काशितम संस्कृत का है। प्रार्ण-मान में समा रूप लामिश्र होता है। इसमें सुत्र- संख्या १-१८१ की वृत्ति से 'क' के स्थान पर 'ज्' का श्रादेश; १.१७७ से त' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्त के एक वचन में घुसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५२३ से प्रात 'म्' का. श्रानुस्वार होकर खासि रूप सिद्ध हो जाता है।
फसितम् संस्कृत रूप है । आप- प्राकृत में इसका रूप खसिर्थ होता है । इसमें सूत्र- संख्या १.१८१ की वृत्ति से 'क' के स्थान पर 'ख' का श्रादेश और शेष सिद्धि उपरोक्त खासिभं रूप के समान ही जानना ॥१-६८५॥
मरकत-मदकले गः कंदु के वादेः ॥ १-१८२ ॥ अनयोः कस्य गो भवति, कन्दुत्वाद्यस्य कस्य ।। मरगयं | मयगलो। गेन्दु ॥
अर्थ:-मरकत और मदकल शब्दों में रहे हुा, "क" का तथा कन्दुक शहर में रहे हुए श्रादि 'क' का "ग" होता है । जैसे:-मरकतम् नरगः मकलामयगलो और कन्दुकम्=ोन्दुवे ।।
. मरकतम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मरगयं होता है । इममें सूत्र-संख्या १-१२ से "क" के स्थान पर "ग" की प्राप्ति; १-१७७ ले त का लोप १-१० से शेष 'अ' को य की प्राप्ति ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में "मि" प्रत्यय के स्थान पर "म्" प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त “म्" का अनुस्वार होकर मरगय रूप सिद्ध हो जाता है।
मरकल: मंस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप मयगलो झेता है । इममें सूत्र-संख्या १-१४० में ' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्तिः १-१५२ से'क' के स्थान पर 'ग' का श्रादेश; और ३-२ से प्रश्रमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मयगलो रूप सिद्ध हो जाता है। गेन्दुभं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५७ में की गई है । ॥ १-१८२ ॥
. किराते चः ॥ १-१८३ ॥