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* प्राकृत व्याकरण में
किराते कस्य चो भवति || चिलाओ । पलिन्द एवायं विधिः। कामरूपिणि तु नेष्यते । नमिभी हर-किरायं ॥
अर्थ:-'किरात' शब्द में स्थित 'क' का 'च' होता है । जैसे:--किरात: चिलायो || किन्तु इम में यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब 'किरात' शरद का अर्थ 'पलिन्द्र' याने मील जाति वाचक हो; तभी किरात में स्थित 'क' का 'च' होगा । अन्यथा नहीं । द्वितीय बात यह है कि जिमने स्वेका पूर्वक 'भील' रूप धारण किया हो और उस समय में उसके लिये यदि 'किरान' शब्द का प्रयोग किया जाय तो प्राकृत भाषा के रूपान्तर में उम 'किरात' में स्थित 'क' का 'च' नहीं होगा। जैसे-तमामः हर किरातम्= नमिमो हर-किरावं ॥
किरातः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप चिलायो होता है । इसमें सूत्र-मंख्या-१-८३ से 'क' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति; १-२५४ से र्' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से 'तू' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चिला रूप सिद्ध हो जाता है ।
ममामः संस्कृत्त सकर्मक क्रिया पद है । इमका प्राकृत रूप नमिमो होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३६ से हलन्त 'नम्' धातु में 'अ' की प्राप्ति; ३-१५५ से प्राप्त 'अ' विकरण प्रत्यय के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; ३-१४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष ( उत्तम पुरुष ) के बहु वचन में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नमिमा रूप सिद्ध हो जाता है।
हर-किरातम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप हर-किरायं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्तिः ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में प्रात 'श्रम' प्रत्यय में स्थित 'अ' का लोप और १-२३ से शेष 'म्' का अनुस्वार होकर हर किरायं रूप सिद्ध हो जाता है। ॥ १-१८३ ॥
शीकरे भ-हो वा ॥ १-१८४ ॥ शीकरे कस्य भहौं वा भवतः ।। सीभरो सीहरो । पक्ष सीअरो ॥ - अर्थः- शीकर शब्द में स्थित 'क' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'भ' अथवा 'ह' की प्राप्ति होती है । जैसे- शीकरः = सीभरो अथवा सीहरो ॥ पक्षान्तर में सीअरो भी होता है।
शीकरः- संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सीभरो, सीहरो और सीअरी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स्'; १-१८४ से प्रथम रूप और द्वितीय रुप में क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'क' के स्थान पर 'भ' अथवा 'ह की प्राप्ति; १-१७७ से तृतीय रुप में पत्तान्तर के कारण से 'क' का लोप और ३.२ से सभी रूपों में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर