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* प्राकृत व्याकरण *
कुज - कप रे - कीले कः खोऽनुष्ये ॥ १-१८१ ।।
एषु कस्य खो भवति पुष्पं चेत् कुब्जाभिधेयं न भवति । खुजो । खप्परं । खोली || पुष्प इति किम् । बंधे कुज्जय-पसूं । श्रर्षेऽन्यत्रापि । कासितं । खासि । कसितं ।
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खसि ॥
अर्थ :- कुब्ज; कर्पर; और कीलक शब्दों में रहे हुए 'क' वर्ण का 'ख' हो जाता है। किन्तु यह ध्यान में रहे कि कुब्ज शब्द का अर्थ 'पुष्प' नहीं हो तभी 'कुब्ज' में स्थित 'क' का 'ख होता है; अन्यथा नहीं । जैसे- कुदजः खुज्जी । कर्परम् = खप्परं । कीलकः - खील
॥
प्रश्नः - -'कुब्ज' का अर्थ फूल - 'पुष्प' नहीं हो, तभी कुब्ज में स्थित 'क' का 'ख' होता है ऐसा कहा गया है ?
उत्तरः- क्योंकि यदि कुज का अर्थ पुष्प होता हो तो कुछ में स्थित 'क' का 'क' ही रहता है । जैसे:- बंधितुम् कुब्जव प्रसूनम् बंधे कुज्जय-पसू || आर्ष- प्राकृत में उपरोक्त शब्दों के अतिरिक्त अन्य शब्दों में भी 'क' के स्थान पर 'ख' का आदेश होता हुआ देखा जाता है । जैसे:- कासितम् = खासियं । सितम् - खसि ॥ इत्यादि ।
लुडजः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप खुजो होता है। इसमें सूत्र संख्या १- १८१ से 'क' को 'ख' की प्राप्ति २-७६ से 'ब्' का लोप २८ से 'ज' को द्वित्व 'ज्ञ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खुओ रूप सिद्ध हो जाता है ।
कर्यरस संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप खप्परं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-९८१ से 'क' को 'ख' की प्राप्ति २७६ से प्रथम 'र्' का लोपः २८६ से 'प' को द्वित्व पूप' की प्राप्ति ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर खप्परं रूप सिद्ध हो जाता है।
कीलकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप खीलो होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-१८' से प्रथम 'क' को 'ख' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'क्रू' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर स्पीलओ रूप सिद्ध हो जाता है।
बेधितुम् संस्कृत हेत्वर्थ कृदन्त का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप बंधे होता है। संस्कृत मूल धातु 'बंधू' हैं। इसमें सूत्र संख्या ४-२३६ से हलन्त 'धू' में 'अ' की प्राप्ति; संस्कृत ( हेमचन्द्र ) व्याकरण के ५-१-१३ सूत्र से हेत्वर्थ कृदन्त में 'तुम' प्रत्यय की प्राप्ति एवं सूत्र संख्या ३- १५७ से 'घ' में प्राप्त 'अ' को