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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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प्रश्नः - 'प्रायः इन वर्गों के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है' ऐसा 'प्रायः अव्यय' का उल्लेख क्यों किया गया है ?
उत्तरः--क्योंकि अनक शब्दों में 'स्वर से परे असंयुक्त और अनादि होते हुए भी इन वर्णों के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती हुई नहीं देखी जाती है, जैसे-' का ज्याहरणार्थ- जलः = सरिसत्रखलो || 'घ' का उदाहरण- प्रलय घनः पय-वरणो ॥ 'थ' का उदाहरण- अस्थिरथिरो ॥ 'घ' कर उदाहरण-जिन-धर्मः-जि-धम्मो ॥ तथा 'भ' का उदाहरण- प्रष्ट भयः = पराद्रु भय और नभम्नभं ॥ इन उदाहरणों में ख़' 'त्र' आदि वर्षों के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं हुई है ।
शाखा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप साहा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-०६० से 'शू' का 'स्'; और १-९८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर साहा रूप सिद्ध हो जाता है।
सुखम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुहं होता है। इसमें सूत्र संख्या १८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-१३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुहं रूप सिद्ध हो जाता है ।
मेखला संस्कृत रूप हैं । इसका प्राकृत रूप मेहला होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१६७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर मेहला रूप सिद्ध हो जाता हैं ।
लखति संस्कृत क्रिया - पर रूप है। इसका प्राकृत रूप लिहइ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-४८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-९३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुप के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर लिइ रूप सिद्ध हो जाता है।
घः संस्कृत रूप हैं। इसका प्राकृत रूप मेहो होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मेही रूप सिद्ध हो जाता है ।
जघनम् संस्कृत रूप है | इसक प्राकृत रूप जहणं होता है। इसमें सूत्र संख्या १- १८७ से 'प' के स्थान पर 'ह' को प्राप्तिः १२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर जहणं रूप सिद्ध हो जाता है ।
माघः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप माहो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर माहो रूप सिद्ध हो जाता है ।
मला संस्कृत सकर्मक क्रिया-पह रूप है। इसका प्राकृत रूप लाइ होता है । इसमें सत्र संख्या