________________
*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
[२०३
पएणो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१४२ में की गई है।
सुखकरः संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप सुहकरो और सुह्यरो होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-१८७ से 'ग्य' का ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप मुहफरो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप सुहयरो में सूत्र संख्या ५-६८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुहमरो रूप सिद्ध हो जाता है।
आगमिकः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप आगमिओ और प्रायमिओ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप आगमिश्रो में सूत्र संख्या १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रुप आगमिओ सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप आयमिओ में सूत्र-मंख्या १-१७७ की वृत्ति से वैकल्पिक-विधान के अनुमार 'ग्' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति :-१७ से 'क' का लोप पौर ३-२ से पथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप आगमिमी भी सिद्ध हो जाता है।
जलधरः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप जलचरो और जलयरो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप जलचरों में सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जलचरो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप जलयरी में सूत्र-संख्या १-१४४ से 'च' का लोप; १-१८० से शेष ' को 'य' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप जलयरो भी सिद्ध हो जाता है।
बहुतरः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप बहुतरो और बहुअरी होते हैं। इनमें से प्रथम रूप बहुतरो में सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर भी प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप बहुतरो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप बहुअरों में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप बहुअरी भी सिद्ध हो जाता है।
सुरषदः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत म्प सुहदो और सुहश्रो होते हैं। इनमें से प्रथम प सुहदो में सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में