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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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प्रश्न:--'अनादि रूप से रहे हुर हों' अर्थात् शल्य के आदि में नहीं रहे हुए हों; ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तरः यदि 'क, ग, च, ज. त, द, प, य और व' वर्ण किसी भी शब्द के आदि भाग में रहे हुर हों तो इसका लोग नही होगा। कहा सदाहरण:-कालः कालो । 'ग' का उदाहरण:गन्धः गन्धो । 'च' का उदाहरण:-चोर: चोरो । 'ज' का उदाहरण:-जारम्जारो। 'त' को उदाहरण:तरु-तरू । 'द' का उदाहरणः-दवा-दवो । 'प' का उदाहरणः-पापम्=पावम् ! 'व' का उदाहरणःवर्ण:-अएणो । इत्यादि ।।
. शब्द में आदि रूप से स्थित 'च' का उदाहरण इस कारण से नही दिया गया है कि शब्द के थादि में स्थित 'य' का 'ज' हुशा करता है । इसका उल्लेख आगे सूत्र संख्या १-२४५ में किया जायगा । ममास गत शब्दों में वाक्य और विभक्ति की अपेक्षा से पदों की गणना अर्थात शब्दों की मान्यता पृथक् पृथक भी मानी जा सकती है; और इसी बात का समर्थन आगे भी किया जायगा; तदनुसार उन समास गन शब्दों में स्थित 'क, ग, च, ज, त, द, प, य और व' का लोप होता है और नहीं भी होता है । दोनों प्रकार की स्थिति देखी जाती है। जैसे-'क' का उदाहरण:-सुखकरः सुहकरो अथवा सुहयरो। 'ग' का उदाहरणः-श्रागमिकः-आगमित्रो अथवा श्रायमिश्रो । 'च' का उदाहरण जलचरः जलघरो अथवा जलयरो 'त' का उदाहरण बहुतरः = बहुतरो अथवा बहुअरो। 'द' का उदाहरणः-सुखा-पुहहो अथवा सुहओ ॥ इत्यादि ॥
किन्हीं किन्हीं शब्दों में यदि 'क, ग, च, ज, त, द, प, य और व' आदि में स्थित हो तो भी उनका लोप होता हुआ देखा जाता है । जैसे-'प' का उदाहरण:-स पुनःस उरण || 'च' का उदाहरण:स च =सो श्र ।। चिह्नम् = इन्धं ।। इत्यादि ।
किसी किसी शब्द में 'च' का 'ज' होता हुआ भी पाया जाता है । जैसे-पिशाची-पिसाजी । किन्हीं किन्हीं शब्दों में 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति हो जाती है। जैसे-एकत्वम्-पग ॥ एक: एगो॥ अमक:-श्रमगो । असुक:-असुगो ।। श्रावका सावगी ॥ आकार: आगारो । तीर्थकर:-तित्थगरो । आकर्षः अागरिसो । लोकस्य उद्योतकराःम्लोगरस उज्जोगरा ॥ इत्यादि शब्दों में 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति होती हुई देखी जाती है । इसे व्यत्यय भी कहा जाता है । व्यत्यय का तात्पर्य है--वर्गों का परस्पर में एक के स्थान पर दूसरे की प्राप्ति हो जाना; जैसे—'क' के स्थान पर 'ग' का होना और 'ग' के स्थान पर 'क' का हो जाना 1 इमका विशेष वर्णन सूत्र-संख्या ४-४४७ में किया गया है । आप प्राकृत में वर्णों का अव्यवस्थित परिवर्तन अथवा अव्यवस्थित वर्ण आदेश भी देखा जाता है । जैसे-पाकुचनम्= पाउण्टणं ॥ इस उदाहरण में 'च' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति हुई है । यो अन्य पार्ष-रूपों में भी समझ लेना चाहिये ॥