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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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तृतीय रुप उवहसिथ में वैकल्पिक विधान की संगति होने से सत्र संख्या १-२३१ से 'प' का 'र' और शेष सिरि प्रथम रुप के समान ही होकर तृतीय रुप उपहासों मी सिद्ध हो जाता है।
उपाध्यायः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप अज्झायो, प्रोज्झाश्रो और उवमाश्री होते हैं । इनमें से प्रथम रुप ऊझाश्रो में सूत्र संख्या १.१७३ से श्रादि स्वर 'उ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'प' व्यन्जन के स्थान पर अर्थात् 'उप' शब्दांश के स्थान पर वैकल्कि रुप से '' आदेश की प्राप्ति; १-८४ 'पा' में स्थित 'आ' को 'अ' की प्राप्ति; २-२६ से 'ध्य' के स्थान पर झ' का आदेश; २-८६ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व मझ की प्रामि, २६० से प्राप्त पूर्व 'झ' का 'ज्'; १-१४७ से 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्ययके स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप अज्झामो सिस हो जाता है।
द्वितीय रूप प्रोमाओमें सूत्र-सख्या १-७३ से वैकल्पिक रुप से 'उप' के स्थान पर 'ओं' श्रादेश की प्राप्ति और शेष सिद्धि प्रथम रुप के समान ही होकर रितीय रुप भोजमामो सिर हो जाता है।
तृतीय रुप उवझाश्रो में वैकल्पिक-विधान संगति होने से सूत्र-संख्या-१-२३१ 'क' का 'व' और शेष सिति प्रथम रूप के समान होकर तृतीय रूप उपज्झाओ भी सिद्ध हो जाता है ।
उपवासः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप उश्रासो, ओषधासो और उववासो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप ऊश्रासो में सूत्र संख्या १-१७३ से आदि स्वर 'उ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'प' व्यन्जन के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'क' श्रादेश की प्राप्ति; १-१७७ से 'व' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रुप ऊभासो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप श्रोधासी में सूत्र संख्या १-१७३ से वैकल्पिक रूप से 'उप' के स्थान पर 'ओं' आदेश की प्राप्ति और शेष सिद्धि प्रथम रुप के समान ही होकर द्वितीय रुप ओणासी मी सिम हो जाता है
तृतीय रूपश्ववासो में वैकल्पिक-विधान की प्रगति होने से सूत्र-संख्या १-२३१ से 'प' का '' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप उपचासी भी सिद्ध हो जाता है ॥ १-१७३ ।।
उमो निषण्णे ॥ १-१७४ ॥ निषण्ण शन्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यञ्जनेन सह उम आदेशो वा भवति । गुमण्यो सिणसण्णो ॥
अर्थ:-'निषण्ण' शब्द में स्थित आदि स्वर 'इ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'प' व्यञ्जन के