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प्राकृत व्याकरण *
हरीतकी संस्कृत शटर है। इसका प्राकृत रूप हरडई होता है । इसमें सूत्र संख्या १-६६ से आदि 'ई' फा 'अ'; १-२०६ से 'त' का 'ड'; १-१४७ से 'क' का लोप; होकर हरडई रूप सिद्ध हो जाता है।
श्रात्कश्मीरे ॥ १-१०० ॥ । कश्मीर शब्दे ईत श्राद् भवति ।। कम्हारा ।।
अर्थः-कश्मीर शब्द में रही हुई 'ई' का 'श्रा' होता है । जैसे-कश्मीराः = कम्हारा ॥
कश्मीराः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप कम्हारा होता है । इसमें सूत्र संख्या २.७४ से 'श्म' का 'म्ह'; १-१०० से 'ई' का 'श्रा'; ३-४ से प्रथमा के बहु ववन में पुल्लिग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति एवं लोप; -१२ से अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' का दीर्घ स्वर 'या' होकर फम्हारा रूप सिद्ध हो जाता है।
पानीयादिष्वित् ॥ १-१०१॥ पानीयादिषु शब्देषु ईत इतू भवति । पाणिनं। श्रलियं । जिमइ । जिनउ । विलियं । करिसो । सिरिसो । दुइझं । तइमं । गहिरं । उपणियं । प्राणिनं पलिविनं। श्रोसिअन्तं । पसिन । गहि | दम्मिश्रो । तयाणि ।। पानीय | अलीक 11 जीवति । जीवतु । बोडित । करीप । शिरीष । द्वितीय । तृतीय । गभीर । उपनीत । आनीत । प्रदीपित । अवसीदत् । प्रसीद । गृहीत । वल्मीक । तदानीम् इति पानीयादयः ।। बहुलाधिकारादेषु क्वचिभित्यं क्वचिद् विकम्पः । न । पाणीअं | अलीअं । जीआइ । करीसो । उवणीओ । इत्यादि । सिद्धम् ।।
अर्थः--पानीय आदि शब्दों में रही हुई 'ई' की 'इ' होती है । जैसे-पानीयम् = पाणिनं । अलीकम् -अलिभं । जीवति - जिअह । जीवतु जिज | श्रीडितम् = विलियं । करीषः = करिसो। शिरीषः-सिरिसो । द्वितीयम् = दुइ । तृतीयम् = तइनं । गभीरम् गहिरम् उपनीतम् = उणिवे। श्रानीतम् -श्राणिभं । प्रदीपितम् - पलिविभं ) अबसीदत्तम् श्रोसिअन्तं । प्रसीद-पसिन गृहीतम
। वल्मीका-वम्मिश्रो। तदानीम्=तयार्थि। इस प्रकार ये सब 'पानीय आदि' जानना । बहुल का अधिकार होने से इन शब्दों में कहीं कहीं पर तो 'ई' की 'इ' नित्य होती है; और कहीं कहीं पर 'ई' की 'इ' विकल्प से हुआ करती है । इस कारण से पानीयम् = पाणीअं और पारिणअं; अलीकम् = अलीनं और अलिअं; जीवति = जीआइ और जीश्रइ; करीषः-करीमो और करिसो; उपनीतः = उवणीओ और उवरियो । इत्यादि स्वरुप वाले होते हैं।
पानीयम संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप पाणि और पाणी होते है। इनमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-१०१ से दीर्घ 'ई' का हस्व 'इ'; १-१७७ से 'य' का लोप; ३-२५ से प्रथमा