________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[१५७
में अथवा स्त्री लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उका दीर्घ स्वर · होकर रिऊ रूप सिद्ध हो जाता है।
उऊ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-५३१ में की गई है ।
ऋषिः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप रिसी और इसी होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १.१४१ से 'ऋ' की विकल्प से 'रि'; १-६० से 'ए' का 'स्; और ३-१: से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इकी दीर्घ स्वर 'ई' होकर रिसी रूप सिद्ध हो जाता है। इसी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१.८ में की गई है। ।। १-१४१ ।।
दृशः क्विप्-टक सकः ॥ १-१४२ ॥ कि टक सक इत्येतदन्तस्य दृशे र्धातो ऋतो रिरादेशो भवति ॥ रक | सरिरूषो । सरि-बन्दीणं ।। सदृशः। सरिसो। सदृक्षः । सरिच्छो । एवम् एवारिसो । भवारिसी । जारिसो । तारिसो । केरिसो। एरिसो | अन्नारिसो । अम्हारिसो। तुम्हारिसो।। टक्सक्साहचर्यात त्यदाद्यन्यादि [हे. ५-१ ] भूत्र-विहितः क्विबिह गृह्यते ॥
अर्थः यदि दृश् धातु में 'क्विप', 'टक', और 'सक्' कृदन्त प्रत्ययों में से कोई एक प्रत्यय लगा हुआ हो तो 'दश' धातु में रही हुई 'ऋ' के स्थान पर 'रि' का आदेश होता है । जैसे-सर-सरि ।। सदृश -वर्णः = सरि-घण्णो । सदृश -रूपः-सरि-ख्यो । सदृश -चन्दीनाम्-सरि-वन्दीणं । सहशःसरिसो । सदृक्षः= सरिच्छो । इसी प्रकार से अन्य उदाहरण यों है:- एतादृशः= एअारिमो । भवादृशः-भवारिसो। यादृशः-जारिसो। तारशः तारिसो । कीरशः= कैरिमो । इदृशःएरिमो। अन्यादशः अन्नारिसो | अस्मादृशः = अम्हारिसो । युष्मादशः = तुम्हारिसो। इस सूत्र में 'टक्' और 'मक्' प्रत्ययों के साथ 'क्विप' प्रत्यय का उल्लेख किया गया है; इस पर से यह समझा जाना चाहिये कि इस सत्र को 'त्यायन्यादि-(हे० ५-१-१५२) सत्र के साथ मिलाकर पढ़ना चाहिये । जिसका तात्पर्य यह है कि 'तत्' आदि सर्वनामों के रूपों के साथ में यदि दृश धातु रही हुई हो और उस स्थिति में 'दृश 'धातु में क्विप् प्रत्यय लगा हुआ हो तो 'दृश' धातु को 'ऋ' के स्थानपर 'रि' का आदेश होता है। ऐसा वात्पर्य समझना।
सदृश संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप सरि होता है। इसमे मत्र मंल्या १-१४७ से 'द' फा लोप१-१४२ से 'ऋ' की 'रि' और ५-११ से 'क' का लोप होकर सरि रूप सिद्ध हो जाता है।
__ वर्णः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वण्णा होता है । इसमें सूत्र संख्या २.७६ से 'र' का लोप; २-८८ से 'ण' का द्वित्व 'एण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुलिंग में 'मि प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पण्णो रूप सिद्ध हो जाता है।