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સરસ્વતિમ્બ્રેન મણીયા સા
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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
दैन्यम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१५१ से ऐ' के स्थान पर 'अ' का प्रदेश २७८ से 'य्' का लोप २६ से शेष 'न' का द्वित्व 'म'; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर वनं रूप सिद्ध हो जाता है ।
ऐ संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप असर होता है । इसमें सूत्र - संख्या १-१५१ से "" के स्थान पर "" का आदेश: २७६ से "व्" का लोपः १ - २६० से शेप "श" का "स"; २०१०७ से 'र्' में "इ" का आगम; १-१७७ से "यू" का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "मू' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर असर रूप सिद्ध हो जाता है । मेरः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप भइरवों होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १५५ से "ऐ" के स्थान पर 'अइ" का आदेश; और ३. से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "यो ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भइरको रूप सिद्ध हो जाता है।
dres: संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप वइजवणी होता है। इसमें सूत्र संख्या ४ - १५१ से "ऐ" के स्थान पर "अ" का आदेश १-२ से "न" का "ए"; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वहजवणो रूप सिद्ध हो जाता है।
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द्वैषप्तम, संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप दइयां होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१५१ से ' ऐ" के स्थान पर "अ' का आदेश; १-१७७ से "तू" का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "मू" प्रत्यय की प्राप्ति और १ २३ से प्राप्त "मू" का अनुस्वार होकर व रूप सिद्ध हो जाता है ।
tarai संस्कृत रूप है । इसका प्रकृत रूप वह चाली होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१५१ से 'ऐ' के स्थान पर '' का आदेश १-१७५ से 'लू' और 'य्' का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त भू का अनुस्वार होकर पहली रूप सिद्ध हो जाता है ।
देश: संस्कृत विशेषण हैं। इसका प्राकृत रूप बरसो होता है। इसमें सूत्र संख्या १- ५१ से 'ऐ' के स्थान पर 'अह का आदेश: १- ७४ से 'दू' का लोप; १६० से 'श' का 'स' ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वइएसी रूप सिद्ध हो जाता है ।
'देहः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप बल्हो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१५१ से 'ऐ' के स्थानपर 'अन' का आदेश १-१७७ से 'द' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि'