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* प्राकृत व्याकरण *
द्वितीय रूप (आउज्ज) में सूत्र-संख्या १-१५६ के अभाव में वैकल्पिक पक्ष होने से १८४ से "ओ" को “उ" की प्राप्ति; १.१७७ से "त" का लोप; और शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही जानना । यो आउज सिद्ध हुआ ।
शिरोपेतना संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सिरविश्रणा और मिरोवित्रणा होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या १-१५६ से वैकल्पिक रूप से "श्री" को "श्र" की प्राप्ति; १-२६० से "" का "स"; १-१४६ से "ए" को 'इ" की प्राप्ति; १-१७७ से “दु" का लोप; १-२२८ से "न" का "ण"; संस्कृत-विधान से स्त्रीलिंग में प्रथमा-विभक्ति के एक वचन में “सि" प्रत्यय की प्राप्ति; इस “सि' में स्थित "इ" की इत् संज्ञा
और सूत्र-संख्या १-११ से शेष "स्" का लोप होकर सिरविअणा और सिरोविअणा दोनों ही रूप क्रम से सिद्ध हो जाते हैं।
ममोहरम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप मणहर और मनोहरं होते हैं। इनमें सूत्रसंख्या १-१५६ से वैकल्पिक रूप से "श्री" को "श्र" की प्राप्ति; १-२२८ से "न" का """; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर “म्" प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्राप्त 'म्" का अनुस्वार होकर क्रम से दोनों रूप मणहरं और मणोहरं सिद्ध हो जाते हैं।
सरोरुहम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सरह और सरोरुह होसे हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१५६ से वैकल्पिक रूप से "ओ" को "अ" की प्राप्ति; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में "सि' प्रत्यय के स्थान पर “म्" प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त "म" का अनुस्वार होकर कम से दोनों रूप सररहं और सरोरुह सिद्ध हो जाते हैं । ।।५-१५६||
ऊत्सोच्छवासे ॥१-५७॥ सोच्छ्वास शब्दे अोत ऊद् भवति ॥ सोच्छनासः । सूसासो ।
अर्थः-सोच्छ्वास शब्द में रहे हुए "ओ" को "कृ" की प्राप्ति होती है । जैसे-सोच्छवामःसूसासो।।
सोच्रवासः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप सूसासो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१५७ से "श्रो" को "" की प्राप्ति; "च्छ्वा" शम्शंश का निर्माण संस्कृत-व्याकरण की संधि के नियमों के अनुसार "श्वा' शदर्शश से हुआ है; अत: २-७६ से 'छका लोप, - ६० से "श" का 'स"; और ३२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "श्री" प्रत्यय की प्राप्ति होकर ससासो रूप सिद्ध हो जाता है । ।।१-१५७ ..
गव्यउ-प्रायः॥१-१५ गो शब्दे श्रोत; अउ आश्र इत्यादेशी मवतः ॥ गउनी । गउभा | गानो ।' हरस्स एसा गाई ।।
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