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प्राकृत व्याकरण * ..
से 'विच' का 'बे; १-१७८ से 'क्' का लोप; २-६८ से 'ल' का द्वित्व 'लल'; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सिप्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्लि और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर वेइल्ल रूप सिद्ध हो जाता है।
मुग्ध संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रुप मुद्ध होता है। इसमें सूत्र संख्या ६-१७७ से 'ग्' का लोप; २-८६ से शेष 'ध' का द्वित्त्र वधु'; २-६० से प्राप्त पूर्व 'धू' का 'द्' होकर मुद्ध रूप सिद्ध हो जाता है।
विवकिल संस्कृत रूप है इसका प्राकृत रुप विश्रइल्ल होता है। इसमें सूत्र संख्या १-५७७ से '' और 'क' का लोप; और ८ से 'ल' को द्वित्व लूल' को प्राप्ति होकर पिअइल्ल रुप सिद्ध हो हो जाता है।
असून संस्कृत रूप है । इसका माकृत रूप पसूण होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७ से 'र' का लोप और १-२८ से 'न का 'ण' होकर पसूण रूप सिद्ध हो जाता है।
पुडा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पुछजा होता हैं। इसमें सूत्र संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में पुल्लिग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति और इसका खोप तथा ३-१२ से 'जम्' प्रत्यय की प्राप्ति एवं इसके लोप होने से पूर्व में स्थित अन्त्य 'अ' का 'या' होकर पुरुभा रूप सिद्ध हो जाता है। . . . . . . . . . .
. . अयस्कारः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप एकारी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६६ से 'अय' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति, २-७ से 'म'. का लोप; २.८६ से 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्तिः
और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर एक्कारी रूप सिद्ध हो जाता है । ॥१-१६॥
. . वा कदले ॥१-१६७॥ . ___कदल शब्दे मादेः स्वरस्य परेण सस्वर-व्यञ्जनेन सह एदू का भवति ॥ केलं कयलं । केली कयली ।. .... . ... . ....:: .
- अर्थ:-कदल शब्द में रहे हुए आदि स्वर 'अ' को परवर्ती स्वर सहित व्यन्जन के साथ वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति होती है। जैसे कदलम् = केलं और कयलं ।। कदली केली और कयली ।।
कलम, संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप केलं और कयलं होता है। इनमें से प्रथम स्प में सूत्र संखया १-१६७ से 'कद' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप केलं सिद्ध हो जाता है।