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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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द्वितीय रूप (कयलं) में सूत्र संख्या १-१७७ से 'दु' का लोप; १-१८० से शेष अ' का 'ब' और शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही जानना । इस प्रकार कयलं रूप भी सिद्ध हो जाता है।
कवली संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप केली और कयली होते हैं। इनमें से प्रथय रूप में सूत्र संख्या १-२६७ से 'कद' के स्थान पर 'के' की प्राप्ति; संस्कृत विधान से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति; और प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' की इत् संहा; तथा १-११ से शेष 'स्' का लोप होकर प्रथम रूप केली रूप सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप (कयली) में सत्र संख्या १-१७७ से 'दु' का लोप; ५-८० से शेष 'अ' का 'य' और होम मिद्धि प्रथा कार के समान ना || मकार कयली रूप भी सिद्ध हो जाता है। ।।१-१६८।।
वेतः कर्णिकारे ॥१-१६८।। कर्णिकार इतः सस्वर व्यञ्जनेन सह एद् वा भवति ।। करणेरं। करिणभारी !!
अर्थः–कर्णिकार शब्द में रही हुई 'इ' के स्थान पर पर-वर्ती स्वर सहित व्याजन के साथ वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति होती है । जैसे-कर्णिकारः = करणेरो और करिणबारो॥
कणिकारः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप करणरो और करिणारी होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-७६ से 'र' का लोप; २.८ से 'रण' का द्वित्व 'गण'; १-१६८ से वैकल्पिक रूप से 'इ' सहित 'का' के स्थान पर 'p' की प्राप्ति, और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम करणेरी रूप सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय कप (करिणयारो) में सूत्र संख्या २-७६ से 'र' का लोपः २.८६ से 'ण' का द्वित्व 'एए'; १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कण्णिभारी रूप भी सिद्ध हो जाता है।
अयौ वत ॥१-१६६॥ अयि शब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वर व्यञ्जनेन सह ऐत् वा भवति । ऐ बीहेमि । अइ उम्मत्तिए । वचनाकारस्यापि प्राकृते प्रयोगः।। .
अर्थ:-'अपि' अव्यय सस्कृत शम्न में श्रादि स्वर 'अ' और परवर्ती स्वर सहित व्यन्जन 'वि' के स्थान पर अर्थात संपूर्ण 'अयि' अव्ययात्मक शब्द के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ऐ' की प्राप्ति होती है । जैसे--अयि ! बिभेमि =ऐ बोहेमि ॥ अयि ! उन्मत्तिके = अइ उम्मचिए । इस सूत्र में 'अमि' अव्यय के स्थान पर 'ऐ' का आदेश किया गया है। यद्यपि प्राकृत भाषा में 'ऐ' स्वर नहीं होता है, फिर भी
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