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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
अर्थः—गो शब्द में रहे हुए "ओ" के स्थान पर क्रम से "श्रउ' और "आ" का आदेश हुत्रा करता है । जैसे-गवयःTो और गउश्रा तथा गायो । हरस्य एषा गौ: हरस्म एसा गाई ।। गउओ और गरमा इन दोनों शरद-रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या १.५४ में की गई है।
गौः संस्कृत रूप (गो + सि) है । इसका प्राकृत रूप गाश्रो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.१५८ से 'ओ' के स्थान पर 'पाय' का आदेश; और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गाना रूप सिद्ध हो जाता है।
हरस्य संस्कृत काप है । इसका प्राकृत रूप हरस्त होता है। इसमें 'हर' मूल रूप के साथ सूत्र संख्या ३-१० से पष्ठी विभक्ति के एक वचन का पुल्लिंग का 'रस' प्रत्यय संयोजित होकर हरस्स रूप सिद्ध हो जाता है।
'एसा' मर्व नाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३३ में की गई है।
गौः संस्कृत (गो + सि)रूप है । इसका प्राकृत रूप गाई होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१५८ से 'ओं के स्थान पर 'आन' प्रादेश की प्रार, ३.३ से पुलिस के हीलिंग में रूपान्तर करने पर 'अन्तिम-श्र' के स्थान पर 'ई' की प्राप्रि; संस्कृत विधान से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' की इन-मज्ञा; और १-११ से शेष 'स्' का लोप: होकर गाई रूप सिद्ध हो जाता है । ॥ १-१५८11
ओत प्रोत ॥ १.१५६ ॥ . औकारस्थादेरोद् भवति ॥ कौमुदी कोमुई ॥ यौवनम् जोवण ॥ कौस्तुभः कोत्धुहो । कौशाम्बी कोसम्बो ॥ क्रौञ्चः कीञ्चो ।। कौशिकः कोसियो ।
अर्थः यदि किसी संस्कृत शब्द के आदि में 'नौ' रहा हुआ हो तो प्राकृत रूपान्तर में उस 'श्री' फा 'श्री' हो जाता है। जैसे-कौमदी - कोमई ! यौवनम् = जोव्वर्ण ॥ कौस्तुभः = कोत्थुहो ॥ कौशाम्बी : कोसम्बी ।। क्रौञ्चः कोचो । कौशिकः = कोसिओ ॥ इत्यादि।
कौमुदी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोमई होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१५६ से 'औ' के स्थान पर प्रो'; और १-१.५७ से 'द्' का लोप होकर फोसई रूप सिद्ध हो जाता है।
यौषम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जोठवणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.१५६ से 'श्री' के स्थान पर 'ओ'; १-२४५ से 'य' का 'ज'; :-4 से 'च' का द्वित्य 'व्व'; १. २८ से 'न' का 'ण'; ३.०५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर जोदयणं रूप सिद्ध हो जाता है।