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* त्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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कौशलम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप उस होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से '' के स्थान पर 'अ' का आदेश १२२६० से 'श' का 'स' ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर उस रूप सिद्ध हो आता है।
परिसं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१११ में की गई है।
सौथम, संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सजहें होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'औ' के स्थान पर 'उ' का आदेश; १-१८७ से 'ध' का 'ह'; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सउ रूप सिद्ध हो जाता है ।
गैडः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप गउड़ों होता है। इस में सूत्र संख्या १- १६२ से 'श्री' के स्थान पर 'अ' का आदेश और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भउडी रूप सिद्ध हो जाता है ।
मौलिः संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप मडेली होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'औ' के स्थान पर 'आप' का आदेश और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' की दीर्घ 'ई' होकर मडली रूप सिद्ध हो जाता है।
मौनम् : संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'औ' के स्थान पर 'ख' का प्रदेशः १-२२८ से 'न' का 'ए' ३२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'स्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर
रूप सिद्ध हो जाता है।
सौराः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सउरा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'ओ' के स्थान पर 'अ' की आदेश प्राप्ति; २-४० से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में पुल्लिंग में में 'जस्' प्रत्मय की प्राप्ति और उसका लोप; ३-१२ से प्राप्त और लुम जम् प्रत्यय की प्राप्ति के कारण से अन्त्य ह्रस्व स्वर '' होकर सउरा रूप सिद्ध हो जाता है।
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कौला' संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कडला होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'औ' के स्थान पर 'अ' की आदेश प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति और उसका लोप; ३०१२ से प्राप्त और लुप्त जस् प्रत्यये के कारण से अम् हस्व स्वर 'अ' का दीर्घ स्वर 'आ' होकर कला रूप सिद्ध हो जाता है ।