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* प्राकृत व्याकरण
कौस्तुमा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोत्थुहो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१५६ से 'श्री' के स्थान पर 'ओ'; २-४५ से 'स्त' का 'थ'; २.८८ से प्राप्त 'थ' का द्वित्व श्य; २-६० से प्राप्त पूर्व '' का ''; १ १८७ से 'भ' का 'ह'; और ३-२ से प्रथमा विभक्त के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओं प्रत्यय की प्राप्ति होकर कोत्थुओ रूप सिद्ध हा जाता है।
काशाम्बी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोसम्बी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १ १५६ से 'औ के स्थान पर 'ओ'; १-२६० से 'श' का 'स'; और १-१ से 'श्रा' का अ' होकर कोसम्बी रूप सिद्ध हो जाता है।
काञ्चः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कोञ्चो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१५६ से श्री' के स्थान पर 'ओं'; २-७ से 'र' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कोचो रूप सिद्ध हो जाता है।
कौशिफः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोसिश्री होता है । इममें सूत्र संख्या १-१५६ से श्रीमान पर 'यो': १.२६० से 'श' का 'स'; १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'प्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कोसिमो रूप सिद्ध हो जाता है। ॥१-१५॥
उत्सौन्दर्यादौ ॥ १.१६० ॥ ___ सौन्दर्यादिषु शन्देषु श्रीत उद् भवति ॥ सुन्दरं सुन्दरि , मुजायणो । सुण्डो । सुद्धोधणी । दुवारिश्री । सुगन्धत्तर्ण । पुलोमी । सुवरिणी ।। सौन्दये। मोजायन । शौएड । शौद्धोदनि । दौवारिक । सौगन्ध्य । पौलोमी । सौवणिक ।। . अर्थः-मौन्दर्य; मौजायन; शौण्ड; शौद्धोदनि; दीवारिक; सौगन्ध्य; पौलोमी; और सौवणिक इत्यादि शयों में रहे हए. 'औ' के स्थान पर 'उ' होता है । जैसे-सौन्दर्यम् = सुन्दरं और सुन्दरिय; मौजायनः =म जायणो; शौण्डः-सुण्डो; शौद्धोदनिः =सुद्धोधणी; दौवारिका दुवारिओ; सौगन्भ्यम् = सुगन्धत्तर्ण; पौलोभी = पुलोमी; और सौवर्णिकः सुषषिणो ॥ इत्यादि ।।
सुन्देरं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-५७ में की गई है।
सीन्द्रयम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सुन्दरिश्र होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१६० से 'श्री' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २-९०७ से 'य' के पूर्व में ' का आगम; २-७८ से 'य' का लोप; ३-५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुन्दरि# रूप सिद्ध हो जाता है।