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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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वियो || देवरः = रिधरो और देवरी || मह महिल-दशन केसरम् मह माहे-दसरा - किसरं ॥ अथवा केसरं || महिला और महेला इन दोनों शब्दों की सिद्धि क्रम से महिला और महेला शब्दों से ही जानना । इसका तात्पय' यह है कि 'महेला' शब्द में रही हुई 'ए' की 'इ' नहीं होती हैं। दोनों ही शब्दों की सत्ता पारस्परिक रूप से स्वतंत्र ही है ।
घेदना संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप विवरण और वे अणा होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; १-१७७ से 'दु' का लोपः १-२२८ से 'न' का 'ए' होकर क्रम से विअणा और अणा रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
चपेटा संस्कृत रूप हैं । इसकर प्राकृत रूप चविडा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; १-२३१९ से 'प' का 'ब'; और १-१६५ से 'टू' का 'ढ होकर विडा रूप सिद्ध हो जाता है ।
fone चपेटा - fear संस्कृत रूप हैं। इसका प्राकृत रूप विश्रड-चवेडा - विणोआ होता हैं । इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'क' का लोप; १-१६५ से 'द्' का 'ड; १-२३१ से 'पू' का 'बू' १ - १६५ से 'ट' का 'ड'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; और १-१७७ से 'दु' का लोप होकर विभड घडा-विणोभा रूप सिद्ध हो जाता है ।
देवर: संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप दिश्ररो और देवरो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; १-१७७ से 'यू' का विकल्प से लोप; और ३- से प्रथमा विभक्ति के एक चचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दिअरी और देवरी रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
महमति संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप मह महिश्र होता हैं। इसमें सूत्र संख्या १-७७ से 'तू' का लोप होकर मह महिन रूप सिद्ध हो जाता है ।
प्रशन संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप दसरा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स' और १- २८ से 'न' का 'ए' होकर दस रूप सिद्ध हो जाता है !
केसरम् संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप किस और कैंसर होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१४६ से 'ए' की विकल्प से 'इ'; २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से किसरं और केसर रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
महिला संस्कृत शब्द है और इसका प्राकृत रूप भी महिला ही होता है। इसी प्रकार से महला भी संस्कृत शब्द है और इसका प्राकृत रूप भी महेला होता है । अतएव इन शब्दों में 'ए' का 'इ' होना श्रावश्यक नहीं है | ॥ १४६ ॥