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* प्राकृत व्याकरण *
'ई' की 'ए'; १-१४२ से 'ट' की रि; १-२६० से 'श' का 'म'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर एरिसो रूर सिद्ध हो जाता है।
नीड-पीठे वा ॥ १-१०६ ॥ अनयोरीत एत्वं वा भवति ।। नेडं नीड । पई पीढं ।
अर्थ: नीड और पीठ इन दोनों शब्दों में रही हुई 'ई' की '' विकल्प से होती है । जैसेनीउम् = नेड और नीड । पीठम् = पेढं और पीढं ।
नीडम् संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप नेड और नीड होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-१०६ से 'ई की विकल्प से 'ए; और ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर क्रम से नेड और नीर रूप मिद्ध हो जाते हैं।
पीठम संस्कृत शब्द है । इमके प्राकृत रूप पेढं और पीढ़ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१०६ से 'ई' की विकल्प से 'ए'; १-१६E से 'ठ' का 'ढ'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नमक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से पेदं और पीई रूप सिद्ध हो जाते हैं । ॥ १६॥
उतो मुकुलादिष्वत् ॥ १-१०७ ॥ मुकुल इत्येवमादिषु शब्देषु आदेरुतोत्वं भवति ।। मउलं | मउलो। मउरं मउडं । अगरु । गई । जहुट्ठिलो। जहिडिली। सोअमल्ल । गलोई ॥ मुकूल । मुकुर । मुकुट । अगुरु । गुर्वी । युधिष्ठिर । सौकुमाय । गुडूची । इति मुकुलादयः । क्वचिदाकारी वि । विद्रुतः । बिदाश्रो ॥
___ अर्थ:- मुकुल इत्यादि इन शब्दों में रहे हुए आदि 'उ' का 'अ' होता है । जैसे-मुकुलम् = मद्धलं और मउलो । मुकुरम्-मउरं । मुकुटम् = मजुङ। अगुरुम् =अगर । गुर्वी गुरुई । युधिष्ठिरः-जहुट्ठिलो और जुहुद्धिलो । मौकुमार्यम् - सोअमल्लं । गुडूची-गलोई । इस प्रकार इन शब्दों को मुकुल श्रादि में जानना । किन्हीं किन्हीं शदनों में श्रादि 'उ' का 'श्रा' भी हो जाया करता है। जैसे-विद्रुतः = विदाओ । इस 'विदाओं शटद में आदि 'उ' का 'या' हुआ है। ऐसा ही अन्यत्र भी जानना !
मुकुलंम संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप मउल और मउलो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; १-१७७ से 'क' का लोप, ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसफ लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर 'मउलं रूप