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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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सूक्ष्म संस्कृत विशेषण है; इसके प्राकृत रूप मण्हं और सुरहं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-११८ से 'ऊ' का विकल्प से 'अ'; ३-७५ से 'म' का 'राह'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नमक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप सह सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-११८ के वैकल्पिक विधान के अनुस्वार ':' का 'अ' नहीं होने पर १८४ से दीप ' का ह्रस्व 'अ' होकर भुण्यं रूप सिद्ध हो जाता है।
सूक्ष्म संस्कृत विशेषण है । इसका शार्ष में प्राकृत रूप सुहम होता है । इसमें सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' का 'ख'; १-१८७ से प्राप्त 'ख' का 'ह'; २-११३ से प्राप्त 'ह' में 'स' की प्रारित; १-८४ से 'सू' में रहे हुए 'ॐ' का 'उ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में मपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सुझुम रूप सिद्ध हो जाता है।
दुकूले वा सश्च द्विः ॥ १-११९ ॥ कल शब्दे उकारस्य भस्व वा भवति । तत्सनियोगे च लकारो निर्मवति ॥ दुअन्लं, दुऊल ॥ आर्षे दुगुन्लं ॥
अर्थ:-दुफूल शब्द में रहे हुग. द्वितीय दीर्घ 3 का विकल्प से 'अ' होता है। इस प्रकार 'थ' होने पर आगे रहे हुए 'ल' का द्वित्व 'स्त' हो जाता है; जैसे-दुकूलम् = दुअल्ल और दुऊल | आर्षप्राकृत में दुकूलम् का दुगुल्ल रूप भी होता है।
हुकूलं संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप दुअल्लं और दुऊलं होते हैं। इसमें सूत्र संख्या-१-१७६ से 'क' का लोप; १-११६ से ऊ'का विकल्प से 'अ'; और 'ल'का द्वित्व 'ल्ल'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से दुअल्लं और दुऊलं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
___ तुकूलम् संस्कृत शब्द है । इसका आर्ष-प्राकृत में दुगुल्ल रूप होता है। इसमें सूत्र संख्या १-३ से 'दुकूल' का 'दुगुल्ल., ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एफ वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्सि; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दुगुल्ला म सिद्ध हो माता है। ॥१६॥
ईबोंद्वयूढे ॥ १.१२० ।। उदयदशब्दे ऊत ईत्वं वा भवति ।। उन्त्रीवं । उच्चूट ।
अर्थ:-उदयूट शब्द में रहे हुए दीर्घ 'उ' को विकल्प से दीर्घ 'ई' होती है। जैसे-उदयूटम् - उव्वी और उल्लं ।।