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* प्राकृत व्याकरण *
पुहई रुप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८८ में की गई है ।
प्रवास: संस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रुप पउत्ती होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप; 1-१७७ से '' का लोपः १-१३१ 'ऋ' को 'उ'; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर पउत्ती रूप सिद्ध हो जाता है।
पाउसो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१९ में की गई है।
पावृतः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप पाउनो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-२.५ से 'र' का लोप; १-१७७ से '' और '' का लोप; १-१३१ से 'ऋ' का 'उ'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पाउओ रुप सिद्ध हो जाता है।
भृतिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप भुई होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१३१ से 'भू' का 'उ'; १-१७७ से 'म्' का लोप; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की हाई पर शेका भुग हो जा है।
प्रभात संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रूप पहुडि होता है। इसमें सूत्र संख्या-२-७ से '' का लोप; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; १-१३१ से ' का 'उ'; और १-२०६ से 'त्' का छ होकर पहुड सिद्ध हो जाता है।
भाभतं संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पाहुड होता है। इसमें सूत्र-संख्या-२-७ से 'र' का लोप; १-१८७ से 'म्' का 'ह'; १-१३१ से 'ऋ' का 'उ'; १-२०६ 'तू' का ''; ३-२५ से प्रथमा विभक्त्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति, और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पाहुई रूप सिद्ध हो जाता है। ___ पर भुतः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप परहुओ होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'भू' का 'ह; १-१३१ से 'ऋ' का ''; १-१७७ से 'त्'; का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर परशुओ रूप सिद्ध हो जाता है ।।
निभुतं संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप निहुमं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-३१ से 'ऋ' का 'उ'; १-९८७ से 'भू' का 'ह';-१७७ से 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन मैं नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर निन्नुभं रूप सिद्ध हो जाता है।
निवृतं संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप निउभं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१४७ से '' और 'तू' का लोप; १-५३१ से 'ऋ' का 'उ'; ३-२५ से प्रथमा विभषि के एक वचन में नपुसफ लिंग