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* प्राकृत व्याकरण *
मुषायाः संस्कृत रुप है । इसके प्राकृत रूप मसाधाश्रो; मसावाश्रो; और मोसा-बाश्री होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या १-१३६ से 'ऋ के क्रम से और विकल्प से 'उ'; 'ऊ'; और 'ओ'; १-२६० से 'ए' फा स; १.१५७ से 'द का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुस्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से और विकल्प से मु याभो, मसाधाओं और मोसा-याओ रूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-०३६॥
इदुतोवृष्ट-वृष्टि-पृथङ् मृदंग -नप्तृके ॥ १-१३७ ।। एषु ऋत इकारोकारौ भवतः ॥ विट्ठो बुट्ठो। बिड्डी युट्ठी। पिहं पुहं मिइंगो मुइंगो। नत्तियो नमो
____ अर्थः वृष्ट, वष्टिः पृथक् ; मदन और नातक में रही हुई 'x' की 'इ' और 'उ' क्रम से होते हैं । जैसे:-वृष्टः विट्ठी और बुट्ठो । वृष्टिः = पिट्टी और वुढी । पृथक्-पिहं और पुहं | मृदङ्गः = मिहङ्गो और महङ्गो ! नप्तकः= नत्तिश्रो और नत्तु ओ ।
वृष्टः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप षिट्ठो और वुट्ठो होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या १.१३७ से 'ऋ' की विकल्प से अथवा क्रम से 'ब' और 'उ'; २-३४ से 'ट' का 'ठ'; २-से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ'; २-६० से प्राप्त पूर्व ‘ट्' का 'ट्' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विदठी और घुटी रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
युष्टिः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप विट्ठी और बुट्ठी होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१३७ से 'ऋ' की बिकल्प से अथवा क्रम से 'इ' और 'उ'; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; २.८६ से प्राप्त 'ट' का द्वित्व 'छ', २०६० से प्राप्त पूर्व '४' का 'ट्' और प्रथमा विभक्ति के एक वयन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर पिटली और पुढी रूप सिद्ध हो जाते हैं !
पिहं अव्यय की मिद्धि सूत्र-संन्या १-२४ में की गई है।
पृथर संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रूप पुह होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१३७ से 'शू' का 'उ'; १-६८७ से 'थ' का 'ह'; १-११ से अन्त्य व्यञ्चन 'क' का लोप और १-४ से आगम रूप अनुस्वार को प्राप्ति होकर पूह रूप सिद्ध होता है।
मइलो रूप की सिद्धि सूत्र-माख्या १-४६ में की गई है।
भगः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मिइलो होता है । इसमें सूत्र-संख्या--१-१३५ से '' को 'इ'; १-१४७ से 'द' का लोप; १-४६ से शेष 'श्र को 'इ' और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मिइंगो रूप सिद्ध हो जाता है।