________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
-
अर्थ:--शब्द में रही हुई श्रादि 'ऋ' का 'अ' होता है। जैसे-घृतम् = घयं ॥ तुरणम् - तणं ।। कुतम् = कथं ॥ धृषभः=वपहो । मृगः=मश्रो ।। घृष्टः= घट्ठी ।। द्विधा-कृतम् = दुहाइवे इत्यादि शब्दों की सिद्धि कृपादि' के समान अर्थात् सूत्र संख्या १-१२८ के अनुसार जानना ।
मृतम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृतक रूप घयं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से '' का 'अ'; १-१७७ से 'त' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' का 'य'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अयं रूप सिद्ध हो जाता है ।
तृणम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप तणं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से 'च' का 'अ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की . प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सणं रूप सिद्ध हो जाता है।
कृतम् संस्कृत अध्यय है। इसका प्राकृत रूप कयं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'न'; १-१९७७ से '' का लोप; १-१८० से शेष 'अ' का 'य'; और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर कायं रूप सिद्ध हो जाता है।
वृषभः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप वसही होता है इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-२६० से 'घ' का 'स'; १-१८० से 'भ' का 'ह', और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्सहो रूप सिद्ध हो जाता है।
अगः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मश्रो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-१७७ से 'ग्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वपन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'प्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मओ रूप सिद्ध हो जाता है।
पृष्टः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप घट्ट होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'भू' का 'अ'; २-३४ से 'ट' का 'ठ', २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'छ'; २-६० से प्राप्त पूर्व '' का 'द'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर घट्ठो रूप सिद्ध हो जाता है ।। दुहाइवे शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७ में की गई है ।।१२।।
प्राकृशा-मृदुक-मृदुत्वे वा ॥ १.१२७ ।। एषु आहेत पान वा भवति ॥ कासा किसा । माउक्क मउ । मा क मउत्तणं ।। अर्थ:-सा, मृदुक, और मृदुत्व; इन शब्दों में रही हुई आदि 'ऋ' का विकल्प से 'भा'
--